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plant tissue culture

Synopsis :-
1. Introduction or definition
2. History
3. Necessity of plant tissue culture
4. Types of plant tissue culture
5. Applications of plant tissue culture
6. Importance of plant tissue culture

1.Introduction or definition :-" पादप उत्तक संवर्धन ज्ञात संगठन के पोषक संवर्धन माध्यम पर अजर्म  परिस्थितियों में पादप कोशिकाओं , उत्तकों या अंगो को  बनाए रखने या विकसित करने के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीकों का एक संग्रह है। यह व्यापक रूप से एक पौधे के क्लोन (clones) का उत्पादन करने के लिए उपयोग किया जाता है जिसे माइक्रोप्रोपेगेशन (micropropagation) के नाम से जाना जाता है।"

2. History :- उत्तक संवर्धन का आरंभ सन 1902 में हुआ जब हैबरलैंड ( Haberlandt ) ने सुझाव दिया कि पादप की एक कोशिका को प्रथक करके उगाया जा सकता है।  हेबरलैंड के इस प्रयोग का उद्देश्य पादप कायिका कोशिकाओं की पूर्णशक्तता ( totipotency ) सिद्ध करना था। लेकिन वह इसको प्रायोगिक रूप से सिद्ध न कर सके।
             रोबिंस एवं कोटे ( Robbins & Kotte, 1922 ) ने मुलो की पृथक कोशिकाओं को ऊगाकर आंशिक सफलता प्राप्त की। गोथेरेट ( gautheret ) नोबकोर्ट एवं हाइट ( Nobecourt & White 1909 ) ने गाजर तथा तंबाकू के कैंबियल उत्तक से उत्तक संवर्धन प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। इसके पश्चात अनेक वैज्ञानिक ने उन्नत तकनीकियो द्वारा कोशिका, उत्तक तथा अंगों के संवर्धन प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के माध्यम ( medium ) का प्रयोग किया।
                 प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीवर्ड एवं उसके साथियों ( Steward. al. 1956 ) ने गाजर के संवर्धन पर महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने अपने प्रयोग से गाजर ( carrot ) के जड़ की फ्लोएम कोशिकाओं के 2 - 2 मी. ग्राम टुकड़ों ( explant ) को नारियल पानी मुक्त द्रव माध्यम पर रखा। इन कोशिकाओं में विभाजन के फलस्वरुप कैलस (callus) का निर्माण हुआ। कुछ समय बाद स्टीवर्ट ने माध्यम में तैरते हुए उत्तको को देखा जिसको उन्होंने भ्रुणाभ ( embryoid)  कहा।

     जब इनको पोषक संवर्धन मध्यम पर उगाया गया तो ये सामान्य पूर्ण पौधे के रूप में विकसित हो गए। वर्तमान में वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है, कि पौधे की प्रत्येक वर्धी ( Somatic ) कोशिका में एक नया पौधा विकसित करने की क्षमता होती है। अर्थात पौधे की प्रत्येक वर्धी अथवा कायिका कोशिका पूर्णशक्त अथवा टोटीपोटेंट होती है।

3. Necessities of plant tissue culture : - संवर्धन प्रयोगों में पौधों से पृथक किए गए उत्तक को पोषक माध्यम ( Nutrient medium ) पर उगाया जाता है। यह विधि पात्रे ( in vitro ) तकनीक कहलाती है। इसके लिए निम्न तीन मुख्य पहलू है जिनक होना आवश्यक है –
1. ( पोषक माध्यम ) Nutrient medium : - पौधे के प्रत्येक भाग तथा उत्तक की वृद्धि के लिए उसकी अपनी एक खास आवश्यकता होती है।  जिससे कि उसमें पूर्ण वृद्धि होती है। अधिकांश माध्यम ( medium ) में दीर्घ तथा सुक्षम तत्वों के अकार्बनिक लवण, विभिन्न शर्कराए होती है। माध्यम को ठोस करने के लिए 2% ( प्रतिशत )  एगार - एगार ( Agar - Agar )  भी मिलाते हैं।
              विभिन्न वैज्ञानिकों ने पादपो के उत्तक संवर्धन के लिए विभिन्न प्रकार के माध्यम को तैयार किया है। जिन्हें हम आज प्रयोग में लाते हैं। इन पोषक मध्यम को तैयार करने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों को मिलाया जाता है। इसके अतिरिक्त विटामिंस शर्कराएं तथा कुछ वृद्धि नियामक ( Growth regulators ) जैसे -  ऑक्सिंस ( Auxins ), साइटोंकाईनिन्स ( Cytokinins ) आदि को मिलाकर मध्यम तैयार किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त पोषक माध्यम में विभिन्न प्रकार के पादप सत्व ( extracts ), जैसे फलों के रस में उपस्थित केसीन हाइड्रोलाइसेट ( Casein hydrolysate ) तथा यिस्ट सत्व  ( yeast extract ) भी मिला दिए जाते हैं। इसके फलस्वरूप माध्यम में उत्तक कच्चर शीघ्रतापूर्वक होता है।
          जिस प्रकार का माध्यम बनाना होता है उसके रासायनिक पदार्थों के अलग-अलग तोल लिया जाता है, और निश्चित पानी की मात्रा में उन्हें घोल दिया जाता है। द्रव माध्यम ( liquid medium ) बनाने के लिए उसमें  Agar – Agar नहीं मिलाया जाता है किंतु आर्ध ठोस माध्यम ( Semi – Solid medium ) बनाने के लिए इसमें 0.8 प्रतिशत एगार का पाउडर मिलाते हैं, इस बात का विशिष्ट ध्यान रखा जाता है कि बने हुए माध्यम का पी-एच ( PH ) मान 5.8 होना चाहिए। इसके पश्चात माध्यम को पाइरेक्स ( purex )  के बने हुए फ्लास्को संवर्धन नलीयों  ( culture tubes ), पेट्रीडिश ( Petridish ) में भरकर कॉटन का प्लग ( cotton plug ) लगा दिया जाता है। इस प्रकार बर्तनों में भरे हुए संवर्धन माध्यम में विभिन्न प्रकार के संवर्धन किए जाते हैं।

2. अजर्म अवस्था ( Aseptic condition ) : - संवर्धन प्रयोग की सफलता अजर्म अवस्था पर निर्भर करती है, क्योंकि संवर्धन माध्यम के अंदर शर्करा होती है जिससे उसमें सूक्ष्मजीवों की तेजी से वृद्धि करने की संभावना रहती है जो संवर्धन किए गए उत्तक को पूरी तरह से ढक देते हैं तथा उसकी वृद्धि को रोकने का प्रयास करते हैं। कॉच का सामान जैसे – संवर्धन नलिका ( culture tube ), पेट्रीडिश, फ्लास्क, बीकर आदि को ऑटोक्लेव ( Autoclave ) या ओवन ( oven ) मे रखकर निजिक्रत करते हैं। वातावरण को निजिक्रत करने के लिए फॉर्मेलिन या UV किरणों का प्रयोग किया जाता है।
          पादप मटेरियल की सतह पर किसी भी मटेरियल को पादप मटेरियल को प्रकार के सूक्ष्म जीवों में रहे अतः इसकी सतह का निर्जलीकरण संरोपण (inoculation) से पूर्व निम्न प्रकार संरोपण कक्ष में करते हैं।
(1) सर्वप्रथम पादप material को 5% v/v टीपाल(teepal) के बोल मे 10-15 minutes' डूबा रहने दीजिए।
(2) पादप material को चिमटी की सहायता से निकालकर अच्छी तरह पहले पानी से नल के नीचे धोइए और फिर आसुत जल में धोइए।
(3) इसके बाद पादप material को संरोपण कक्ष मे 70% इथाइल एल्कोहल में डुबाकर एक मिनट तक रखा रहने दीजिए।
(4) तत्पश्चात पादप मटेरियल को ऑटोक्लेव जॉ बोतल (autoclave jaw bottle) 0-1% मार्क्यूरिक क्लोराइड (Hgcl 2) तथा 5-10% sodium hydrochloride के समान आयन (v/v) लेकर 10-15min. तक डूबा रहने दीजिए।
(5) इस घोल में डूबे पादप material को भली भांति हिलाइए ताकि 100% निर्जलीकरण हो जाए।
(6) अब पादप material को एक बीकर में डालकर निर्जलीकृत जल में भली भांति धोइए ताकि Hgcl 2 का प्रभाव समाप्त हो जाए।

3. वातन (aeration) :- प्रयोगशाला में जिन उत्तको को संवर्धित किया जाता है उन्हें उपयुक्त वायु प्राप्त होनी चाहिए। जब उत्तको का संवर्धन द्रव माध्यम में किया जाता है तो वायु का प्रबंध विशिष्ट रूप से किया जाता है। इस विधि के लिए फिल्टर पेपर ब्रिज ( filter paper brite)अथवा फिल्टर स्टेरलाइज वायु प्रवाहित की जाती है। इसके अतिरिक्त माध्यम में वायु प्रवाहित करने के लिए स्वचालित शेकर ( shaker Automatic shaker )  का प्रयोग भी किया जाता है। Shaker द्वारा उपचारित करने से उत्तक एकल कोशिकाओं में विभक्त हो जाते है और यह क्रिया ( cloning ) क्लोनिंग कहलाती है जो आनुवंशिकता में महत्वपूर्ण होती है।

 4. पादप ऊतक संवर्धन के प्रकार (Types of plant tissue culture)
    पादप उत्तक संवर्धन को निम्न पांच वर्गों में विभक्त किया गया है –

  1. केलस संवर्धन ( callus culture ) – इस विधि में अजर्म, कोशिका समूह का एक माध्यम पर संवर्धन किया जाता है। पादप मेटीरियल किसी पादप स्त्रोत से प्राप्त करते हैं।
  2. कोशिका संवर्धन ( Cell culture ) – इस विधि में मेटेरियल कैलस से प्राप्त करते हैं और अजर्म कोशिकाओं का संवर्धन, तरल माध्यम पर किया जाता है।
  3. विभज्योतक संवर्धन ( Meristem culture ) – इस विधि में संपूर्ण पादप को प्राप्त करने के लिए प्ररोह प्रविभाजी ( Shoot meristem ) का अजर्म, संवर्धन पोषक माध्यम पर किया जाता है।
  4. ऑर्गन संवर्धन ( Organ culture ) – इस विधि में भ्रूणों, पराग कोष, अण्डाशयो तथा अन्य पादप अंगो का अजर्म संवर्धन पोषक माध्यम पर किया जाता है।
  5. प्रोटोप्लास्ट संवर्धन ( Protoplast culture ) – इस विधि में संवर्धित कोशिकाओं ( cultured cells ) या उत्तको को पादप जीवद्रव्य का अजर्म प्रथक्किकरण ( Isolation ) एवं संवर्धन किया जाता है।

( 1.)  कैलस संवर्धन ( Callus culture )– पादप के वे भाग या उत्तक जिनसे संवर्धन की प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है कर्तोतक या एक्सप्लानट ( Explant ) कहा जाता है। Explant को उपयुक्त संवर्धन माध्यम में रखने पर इसमें कोशिका विभाजन होता है जिसके परिणामस्वरूप असंख्य कोशिकाओं के एक अभिवेदन एवं असंगठित समूह का निर्माण होता है, जिसे कैलस ( Callus ) कहते हैं। इस कैलस में असामान्य वृद्धि होती है तथा इसमें पौधे की अन्य महत्वपूर्ण संरचनाएं उत्पन्न हो जाती है। इन सरचनाओं से कुछ समय बाद  पादपक (Plantlost) उत्पन्न हो जाते हैं। कैलस का यह गुण उसकी प्रमुख कार्यिकीय विशेषता होती है।

( 2.) कोशिका संवर्धन ( Cell culture ) – एकल कोशिक संवर्धन ( Culture of single cells ) –
                सन 1953 में मुईर ( muir ) ने  निकोटियाना टेबेकस (Nicotiona tabacum) तथा टेजिटीस इरेक्टा ( Tagetes erecta ) पादपो की कोशिकाओं का कोशिका निलंबन विधि ( Cell Suspension method ) द्वारा संवर्धन करके सफलता प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त अन्य वैज्ञानिकों ने गाजर की जड़ तथा एंटीराइनाम मेंजस  ( Antirahinum majus)आदि पौधों की कोशिकाओं का निलंबन संवर्धन ( Surpension culture किया है। एकल कोशिकाओं के संवर्धन के लिए निम्नलिखित विधियां प्रयोग में लाई जाती है–
(i)  पेपर रेफ्ट नर्स तकनीक ( Paper raft nurse technique ) – इसमें कैलस को पानी में हिलाकर कोशिकाओं का निलंबन बना लिया जाता है और किस सूई की सहायता से निलंबन में से एकल कोशिकाओं को पृथक कर लेते हैं। इसके पश्चात कैलस पर रखे गए फिल्टर पेपर के ऊपर एकल कोशिका को स्थानांतरित कर दिया जाता है। संवर्धन माध्यम पर रखे हुए नर्स कैलस ( nurse cells ) को पोषण मिलता रहता है, जो फिल्टर पेपर से प्राप्त होता है और एकल कोशिका संवर्धन करके विभाजन प्रदर्शित करती है। इसके पश्चात एकल कोशिका में मंडल          ( colony )  बन जाते हैं, जो एकल कोशिका क्लोन ( Single cell clone ) कहलाते हैं। उदाहरण – क्राउन गाल कोशिकाएं ( crown gall cells )।
(ii) पेट्रीडिश प्लेटिंग तकनीक ( petridish plating technique ) – इसमें पानी में बने हुए कैलस के निलंबन में कोशिकाओं को पृथक कर लेते हैं। इसके पश्चात निलंबन को छानकर कैलस आदि के टुकड़ों को पृथक कर दिया जाता है। और छने हुए द्रव में अनेक एकल कोशिकाएं तथा एकल कोशिकाओं के समूह आ जाते हैं। एगार - एगार ( Agar - Agar ) पोषक माध्यम बनाकर इन एकल कोशिकाओं के निलंबन को उसमें मिला दिया जाता है और इसके बाद एकल कोशिकाओं सहित पोषक माध्यम को स्टेरिलाइज़ड ( Sterilized ) करके पेट्रीडिश में उड़ेल दिया जाता है। उसके पश्चात पेट्रीप्लेटो को 25° c पर रख दिया जाता है और 3 - 4 दिन के बाद एकल कोशिकाओं से उत्पन्न क्लोनस ( Clons ) का निरीक्षण सूक्ष्मदर्शी द्वारा किया जाता है। जब क्लॉन्स बन जाते हैं तो उन्हें पेट्रीडिश से निकालकर दूसरे माध्यम में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
(iii) माइक्रो चैम्बर तकनीक ( Micro chamber technique ) – सन 1960 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक  हैबरलैंड ( Haberland ) ने निकोटियाना टेबेकम (Nicotiana tabacum) के संकर पौधो ( Hybrid plants ) से प्राप्त ट्यूमर्स से एकल कोसिकाओ को निलम्बन प्राप्त किया जिनका संवर्धन करके सफलता प्राप्त की है। उन्होंने पृथक की गई एकल कोशिकाओं को निलंबन प्राप्त किया जिनका संवर्धन करके सफलता प्राप्त की है। उन्होंने पृथक की गई एकल कोशिकाओं को माइक्रो चैंबर्स में पोषक माध्यम के ऊपर उगाया और उनसे क्लांस प्राप्त किए हैं।

3. विभक्योतक संवर्धन ( Miristem culture ) – मेनिहाट एस्कुलेंटा (manihot askulenta) या कसावा पादप (cassava plant) के उपर दो प्रकार के विषाणु आक्रमण करते है -  अफ्रीकन कसावा मॉजेक विषाणु 
(African carsava mosaic virus) तथा कसावा ब्राऊन स्ट्रीक विषाणु (cassava brown streek virus) जिसके कारण इस पौधे की ऊपज तथा गुणवत्ता नष्ट होने लगती है। इस रोग से बचने के लिए वैज्ञानिकों ने अनेक प्रयास किये है जिसके आधार पर कसावा पादप के अग्रस्थ विभाज्योतक (aerial meristem) का संवर्धन करके रोगराहित बनाया जा सकता है। इन विभाज्योतक के 200- 500 um के सेक्शन काट कर GA3, BAP अथवा NAA से उपचारित करके संवर्धन माध्यम मे रखा जाता है और पौधे प्राप्त किए जाते हैं।

4. ऑर्गन संवर्धन (organ culture) -
(I) भ्रूण संवर्धन (embryo culture) - सर्वप्रथम सन 1904 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैनिंग (Hanning) ने भ्रूण संवर्धन पर महत्वपूर्ण कार्य किए थे उन्होंने क्रुसीफेरी (cruciferae) के रेफेनस (raphanus) तथा कोकलेरिया (cocheroria) नामक पौधों पौधों के परिपक्व गुणों का कल्चर प्रयोगशाला में करके सफलता प्राप्त की  डायट्रिक (Dietrich,1925) नामक वैज्ञानिक ने खनिज लवण एवं शर्करा युक्त पोशाक मध्यमवर्ग गुणों का संवर्धन कराया और उन्होंने देखा कि इन प्रकार के भ्रूण सामान्य वृद्धि प्रदर्शित करते हैं। लेबेक (laibach ) नामक वैज्ञानिक के अनुसार लाइनर्स (linurs) की जातियों में जब इंटरस्पेसिफिक (interspecific) क्रास कराया जाता है, उनसे प्राप्त बीज हल्के तथा बहुत अधिक झुर्रीदार होते हैं , जिनमें अंकुरण की क्षमता नहीं होती है। उन्होंने इस प्रकार के बीजों से भ्रूणों को पृथक करके सुक्रोज एवं ग्लूकोस युक्त पोषण माध्यम पर संवर्धन किया और सफलता प्राप्त की। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि इस विधि द्वारा इंटरससिफिक क्रॉस से शंकर पौधों को प्राप्त किया जा सकता है ।आधुनिक युग में पादप अभी जनों को द्वारा यह विधि अपनाई जाती है ,इस प्रकार भ्रूणों का संवर्धन से उनके विकास के लिए पोषक तत्वों का भी पता लगाया जा सकता हैै।
(ii) परागकोष संवर्धन (anthor culture) - प्रायः संपूर्ण पराग कोष के संवर्धन द्वारा अगुणित पौधों को प्राप्त किया जा सकता है इसके लिए पुष्प कलिका ओं का चयन करके उन्हें क्लोरीन वॉटर अथवा अल्कोहल से धोकर स्टेरलाइज्ड कर लेते हैं इसके बाद पुष्प पुष्प कलिकाओं को खोल कर चिमटी की सहायता से परागकोशो को चुनकर पेट्रीप्लेट में लिए गए पोशाक माध्यम के ऊपर  रख देते हैं । यह क्रिया इनॉक्यूलेशन कहलाती है जिसे अजर्म परिस्थितियों में किया जाता है ।इसके पश्चात बैटरी प्लेट्स को उपयुक्त तापमान पर कुछ दिनों के लिए रख देते हैं। ऐसा करने से प्रायः एक प्ररागकोष से लगभग 10-100 तक तक पौधे प्राप्त हो जाते हैं। सर्वप्रथम  परागकोष से कैलश का निर्माण होता है जिनसे एंब्रॉयड्स बनते हैं ।और प्रत्येक एंब्रॉयड से एक प्लांट एकलेट विकसित होता है।
(iii) अंडाशयो का संवर्धन (culture of ovaries) - Larue ,1942 नामक प्रसिद्ध वैज्ञानिको ने माध्यम के ऊपर अण्डाशयो को कल्चर कराया और उस समय से यह तकनीक विभिन्न प्रकार की समस्याओं जैसे फली के परिवर्तन आदि के लिए अपनाई जा रही है निश्च (Nitsch,1992) नामक वैज्ञानिक ने कल्चर माध्यम में टमाटर, तंबाकू तथा सेम के अंडाशयो को उगा कर सफलता प्राप्त की है।

5.  प्रोटोप्लास्ट संवर्धन (Protoplast culture)- इटली (italy) के वैज्ञानिकों ने सन 1969 में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए और उन्होंने बताया कि कोशिकाओं की कोशिका भित्ति को प्रथम करके कायिक कोशिकाओं के जीव द्रव्य मैं संयोजन किया जा सकता है। जिसका प्रयोग लैंगिक संकरण के स्थान पर कर सकते हैं जिसमें एक  केंद्रक मैं दो प्रकार के जीनटाइप के के जर्मप्लाज्म को मिलाया जा सकता है । कई कोशिकाओं में संकरण विशेष तकनीकों द्वारा किया जाता है। अतः इस बात को बहुत आवश्यकता है कि पैतृक प्रोटोप्लास्ट (parental protoplast) से किस प्रकार कायिक संकर प्राप्त किया जाए तथा invitro में उनका संवर्धन किन विधियों द्वारा किया जा सके ताकि चयन किए गए कायिक संकर कोशिकाओं में सम्पूर्ण संकर पदपो को प्राप्त किया जा सके।
सन 1969 से ही इस प्रकार के कायिक संकरण की विधियों को अपनाया जा रहा हैं और इसके स्थान पर लैंगिक संकरण में भी सफलता प्राप्त की जा चुकी है।

6. Importance of plant tissue culture-
पादप उत्तक संवर्धन के कुछ प्रमुख महत्व निम्नलिखित हैं - 
(1)  पादप उत्तक संवर्धन द्वारा आवश्यक एवं कठिनता से प्राप्त दुर्लभ पादपों का गुणन आसानी से किया जा सकता है।
(2) भ्रूण संवर्धन द्वारा कुछ पौधों, जैसे जूट तथा चावल के अपरिपक्व भ्रूण जो प्रायः नष्ट  हो जाया करते हैं, उनके भ्रूणों को जीवित रखा  जा सकता है।
(3) प्रारोह संवर्धन विधि द्वारा विषाणु रोगग्रस्त पौधों से स्वस्थ पौधों को प्राप्त किया जा सकता है।
(4) कायिक संकरण विधि द्वारा पादप कोशिकाओं में संयोजन(fusion) कराया जा सकता है।
(5) उत्तक संवर्धन पौधों को सालभर उगाया जा सकता है चाहे मौसम कुछ भी हो।
(6) यह बाजार में नई किस्मों के उत्पादन में तेजी लाने में मदद करता है।
(7) इसके द्वारा नए पौधे विकसित करने के लिए बहुत कम जगह की आवश्यकता होती है।
(8) यह एक बहुत तेज तकनीक है पौधों के ऊतकों की एक छोटी मात्रा में कुछ ही हफ्तों में हजारों पौधों का उत्पादन किया जा सकता है।

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