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OSMOSIS (परासरण)

1. Osmosis
2.Experiment of osmosis
3. Types of osmosis
4. Importance of osmosis

परासरण (Osmosis)

परासरण की क्रिया जल के अणुओं का एक विलयन से दूसरे विलयन में विसरण (diffusion) है, जो अर्द्धपारगम्य झिल्ली (semipermeable membrane) के माध्यम से होता है। इसे हम सरल शब्दों में कह सकते हैं कि जब पानी का विसरण कम सांद्रण वाले घोल से अधिक सांद्रण वाले घोल की तरफ होता है, तो इसे परासरण (osmosis) कहते हैं।

परासरण का उदाहरण:

इस क्रिया को समझाने के लिए हम U ट्यूब का उपयोग करते हैं। इस ट्यूब को बीच में पार्चमेंट कागज से बाँधते हैं, जो अर्द्धपारगम्य झिल्ली का कार्य करता है। U ट्यूब के दाहिनी भुजा में पानी (जल) और बाईं भुजा में 10% शर्करा का घोल भरते हैं।

कुछ समय बाद यह देखा जाता है कि पानी के अणु दाहिनी ओर से बाईं ओर, यानी शर्करा के घोल की तरफ, विसरण करने लगते हैं। इसका कारण यह है कि दाहिनी ओर (पानी) में जल के अणुओं की सांद्रता अधिक होती है, और वे अधिक सांद्रण वाले घोल (शर्करा का घोल) की ओर जाने लगते हैं, ताकि दोनों घोलों की सांद्रता समान हो सके।

अर्द्धपारगम्य झिल्ली का कार्य:

अर्द्धपारगम्य झिल्ली केवल पानी के अणुओं को ही एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने की अनुमति देती है, जबकि शर्करा के कणों (solute) को इस झिल्ली से निकलने की अनुमति नहीं होती। इसलिए, केवल जल के अणु ही झिल्ली के आर-पार जाते हैं, और इसे परासरण (osmosis) कहा जाता है।

पौधों में परासरण:

पौधों के कोशिकाओं में भी परासरण की क्रिया होती है। कोशिका की प्लाजमालेमा (plasma membrane) और टोनोप्लास्ट (tonoplast) में विशेष प्रकार की झिल्लियाँ होती हैं जो विशिष्ट विलेय (solute) के विसरण की अनुमति देती हैं, लेकिन सभी विलेय इन झिल्लियों के माध्यम से पार नहीं कर सकते हैं।

इस प्रकार, परासरण एक महत्वपूर्ण जैविक क्रिया है जो जीवन प्रक्रियाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पौधों और जानवरों दोनों में जल का संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।



1. परासरण ( Osmosis ) :- परासरण ( Osmosis ) की क्रिया को निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते है — 
      किसी अर्द्धपारगम्य झिल्ली (semipermeable membrane) से होकर एक विलयन से दूसरे विलयन में जल के अणुओं के विसरण (diffusion of water molecules) की क्रिया को परासरण (osmosis) कहते है। यह विसरण कम सांद्रण वाले घोल से अधिक सांद्रण वाले घोल की दिशा में होता है। 
        इसे प्रदर्शित करने के लिए `U‘ ट्यूब (tube) लेते है। इसके आधार पर बीचो-बीच पार्चमेंट कागज (parchment paper) जो अर्द्धपारगम्य कला का कार्य करता है, लगा देते हैं। ट्यूब की दाहिनी भुजा में जल तथा बाईं भुजा में 10% शर्करा का घोल भर देते हैं।
        कुछ समय बाद देखने से ज्ञात होता है कि जल के अणु दाहिनी ओर से बाईं और शर्करा के घोल की और विसरण करने लगते हैं, क्योंकि जल के अणुओं की सांद्रता अधिक होने के कारण इनका विसरण शर्करा के गोल की तरफ होने लगता है। इसी प्रकार दो अलग सांद्रता वाले विलयनो को अर्द्धपारगम्य कला से पृथक करने पर भी विलायक या जल के अणु अर्द्धपारगम्य कला के आर - पार आ - जा सकते हैं जबकि विलेय (solute) के कणों द्वारा यह क्रिया नहीं होती है। इस प्रकार जल के अणुओं का अर्द्धपारगम्य कला द्वारा विसरण परासरण कहलाता है।
         पादपो में पूर्ण रुप से अर्द्धपारगम्य कला नहीं पाई जाती है, किंतु कोशिकाद्रव्य की प्लाजमालेमा विभेदी परागम्य तथा टोनोप्लास्ट (tonoplast) वरणात्मक परागम्य में कलाएं होती है। अतः कलाओं से विशिष्ट विलेयो का विसरण होता है, अर्थात सभी विलेयों का विसरण नहीं होता है।

2. प्रयोग ( Experiment ) :- थिसिल नली द्वारा परासरण का प्रदर्शन — थिसिल नली के मुंह पर कृत्रिम अर्द्धपारगम्य कला, जैसे पार्चमेंट कागज (parchment paper) को मजबूती से बांध देते हैं। थिसिल नली की ग्रीवा कांच की लम्बी नलिका की बनी होती है जिसमे गाढ़ा शर्करा का घोल भरते हैं। थिसिल नली का पार्चमेंट कागज लगा चौड़ा भाग रंगीन पानी से भरे बीकर में लटकाकर स्टैण्ड में लगा देते है।
          बीकर के भरे रंगीन जल में जल के अणुओं की सांद्रता अधिक होने के कारण वे अर्द्धपारगम्य कला (semipermeable membrane) में प्रवेश करते रहेंगे, क्योंकि शर्करा का घोल जो थिसिल नली में लिया था, उसमें जल के अणुओं की सांद्रता कम होगी अतः थिसिल नली में रंगीन जल की मात्रा बढ़ जाएगी और यह जल नली के तल (level) से ऊपर चला जाएगा। जैसे-जैसे थिसिल नली में जल की मात्रा बढ़ती जाती है, शर्करा के घोल की सांद्रता कम होती जाती है और धीरे-धीरे थिसिल नली में जल के अणुओं का विसरण कम होता जाता है। यह क्रिया अन्त: परासरण (endosmosis) कहलाती है। यदि बीकर में जल के स्थान पर गाढ़ा नमक का घोल भर दिया जाता है तो थिसिल नली से जल या विलायक के अणु बाहर की ओर नमक के घोल मे विसरण करने लगेंगे और यह क्रिया बहि: परासरण (exosmosis) कहलाएगी। वास्तव मे परासरण एवं विसरण में अन्तर है कि परासरण में किसी विलायक का विसरण अर्द्धपारगम्य कला द्वारा कम सांद्रता वाले विलयन से अधिक सांद्रता वाले विलयन की ओर होता है।

3. परासरण के प्रकार (Types of Osmosis) :- परासरण की क्रिया दो प्रकार की होती है —
 1. अन्त: परासरण (Endosmosis) — अन्त: परासरण की क्रिया में पानी अथवा विलायक के अणु बाहर के माध्यम से कोशिका के अन्दर प्रवेश करते हैं जिससे कोशिका फूल जाती है।
 2. बहि: परासरण (Exosmosis) — बहि: परासरण की क्रिया में पानी अथवा विलायक के अणु कोशिका के अन्दर से बाहर के माध्यम में आते हैं जिसमे कोशिका सिकुड़ जाती है।

3. पादपो में परासरण का महत्व (Importance of Osmosis in Plants) — 
  1. इस क्रिया द्वारा प्राय: मूलरोमो द्वारा भूमि से जल का अवशोषण होता है।
  2. इसके कारण पौधो की कोशिकाएं आशून (turgid) अवस्था में रहती हैं जिससे पौधे की पत्तियां तथा कोमल अंग सीधे खड़े रहते हैं।
  3. इसके द्वारा स्टोमेटा की रक्षक कोशिकाओं (guard cells) की आशूनता में परिवर्तन के फलस्वरूप स्टोमेटा खुलते तथा बन्द होते हैं।
  4. फलों तथा बीजाणुधानियो का फटना इसी क्रिया द्वारा सम्भव होता है।
  5. इसके द्वारा पादप शरीर की एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पानी पहुंचता रहता है।
  6. पादपो में सूखा (drought) तथा पाला (frost) अवरोधकता (resistance) कोशिकाओं में परासरण दाब के कारण बनी रहती है।
  7. पादपो या पादप अंगों में गति जैसे छुई - मुई (Mimosa pudica) परासरण के कारण होती है।
  8. जड़ों के वृद्धि प्रदेश परासरण के कारण आशून रहते हैं, अतः भूमि में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं।

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