Synopsis-
1. Introduction2. DNA modification
3.DNA damage
4.DNA damage repair
(i)photoreactivation
(ii) Excision repair
(iii) Post replication recombination repair
1. Introduction - आदर्श अनुवांशिक पदार्थ DNA को अपनी प्राथमिक सरचना में ही रहना चाहिए तथा Replication एवं Transcription के समय यह बहुत उच्च fidelity वाला होना चाहिए। और विभिन्न कोशिकीय ( cellular ) एवं extra cellular factor द्वारा होने वाली damages से अपने आपको सरक्षित करना चाहिए। जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्मजीव अपने आनुवंशिक पदार्थ का संदूष न होने के लिए foreigh DNA से सुरक्षित रखते हैं। यह क्रिया restriction enzymes द्वारा होती है। जो DNA अणुओं का बिदल (cleave) करके विशिष्ट recognation स्थल प्रदान करते है किसी जीवधारी के restriction enzyme अपने DNA पर आक्रमण नही करते हैं। जीवाणुओं में यह क्रिया नियंत्रण स्थल के मिथाईलेशन द्वारा होती है। जिसे DNA का रूपांतरण भी कहते है। इसके अलावा DNA damage अनेक क्रियाविधि द्वारा काबू किया जा सकता है जैसे – क्षतीग्रस्थ क्षेत्र ( damage region ) का excision तथा नवनिर्मित DNA द्वारा replacement करके अथवा retrieval system को अपनाकर यह कार्य किया जा सकता है।
2. DNA modification - DNA modification की क्रिया methylation द्वारा सम्पन्न होती हैं। जिसमे CH3 समूह जुड़ जाते है। प्रायः edenine तथा cytosine का methylation होता है। जिसके फलस्वरूप 6-methyladenine तथा 5-methylecytosine बनते हैं।DNA का methylation methylase enzyme द्वारा होता है।e coli में तीन स्पष्ट methylation system पाए जाते है। जैसे-
(1) hsd system - इस तंत्र में जीवाणुओं की भाती adenene का methylation होता है।
(2) dam system - इस तंत्र में adenene का methylation होता है। तथा यह डीएनए के नए बने पुनरावृत्ति मे अंतर बता सकता है।
(3) dm system - यह तंत्र cytosine को methylate करता है किंतु इसका कार्य ज्ञात नही है।
DNA का methylation आवश्यक नहीं जान पड़ता है क्योंकि ecoli के उत्परिवर्तित में ये तीनो प्रकारों के methylation system नही होता है किंतु जीवन क्षम्य रहते हैं, किंतु methylation का उद्देश्य स्पष्ट होता है।
3. DNA danamge - ultraviolet किरणों के प्रभाव से DNA के अणुओं में बहुत अधिक परिवर्तन एवं टूट - फूट ( damage ) होते है, जिनको repair आसानी से की जाती हैं। DNA damaged की मरम्मत की विधिया लगभग सभी जीवो में एक समान होती है। DNA repair की विधियों का विस्तृत अध्ययन e - coli नामक जीवाणु में किया गया है। इन जीवाणुओं में थायमिन डायमर युक्त DNA की मरम्मत के लिए 3 विधियां दी गई है –
(a) प्रकाशीय पुनर्सक्रियिकरण ( Photo reactivation )
(b) एक्सिजन मरम्मत ( excision repair)
(c) द्विगुणन के बाद पुनर्सयोजन मरम्मत ( post replication )
1. Photo reactivation – केलनार (1949) के अनुसार, यदि जीवाणु कोशिकाओं को UV. किरणों के द्वारा treatment करने के पश्चात सामान्य प्रकाश ( visible light ) मे expore किया जाता है, तब UV - किरणों के हानिकारक प्रभाव समाप्त हो जाता है। इस आधार पर केलनर ने बताया कि UV - किरणों के प्रभाव DNA अणु में हुई टूट - फूट ( DNA Damage ) की repair आसानी से की जा सकती है, इसे photo - reactivation कहते है। जीवाणु शेवाल तथा कवक में इस प्रकार की विधि पाई जाती है।
जीव को 2800°A तरंगदेधर्य वाली UV- किरणों में अनावरित ( expore ) करने पर मनोमर से डाईमर का निर्माण हो जाता है, जबकि 2400°A तरंगदेधर्य वाली UV- किरणों के प्रभाव से डाईमर, मोनोमर में परिवर्तित हो जाता है। फोटोरिएक्टिवेशन की क्रिया में एक enzyme भाग लेता है, जो कि थाइमिन डाइमर को तोड़ ( split ) देता है। ये enzyme नीले प्रकाश में UV- किरणों के प्रभाव से उत्पन्न थायमीन डाईमर को तोड़ देता है, जिसमे थायमीन के मोनोमर ( सामान्य DNA ) का निर्माण होता है। इस enzyme को Photoreactivating enzyme कहते है। मनुष्यो में भी enzyme पाया जाता है। जिस व्यक्ति में Photoreactivating enzyme अनुपस्थित होता है, उनमें जिरोडर्मा पिगमेंटोसम ( Xeroderma Pigmentosum : A skim senitive to light ) नामक अनुवांशिक रोग हो जाता है, क्योंकि यह एंजाइम डाईमर को विभक्त करने के पूर्व दृश्य प्रकाश के फोटोन को अवशोषित करता है।
( b ) Excision repair – Excision repair की क्रिया में enzyme के द्वारा प्रेरित बहुत - सी अवस्थाएं आती है, जिसके द्वारा DNA का थायमीन डाईमर ( जो कि UV- किरणों के प्रभाव से बना था ) न्युक्लियोटाइड श्रृंखला से बाहर ( removed ) कर दिया जाता है तथा उसकी जगह DNA का नयाखंड बन जाता है। इस विधि का वर्णन सर्वप्रथम सेटलो तथा कैरियर ( 1964 ) ने किया था। एक्सिजन रिपेयर नीले प्रकाश की उपस्थिति में dark ( अंधेरे मे किया जाता है ) ।
Excision repair की क्रिया के प्रथम चरण में endinuclease enzyme भाग लेता है, जो कि Thymene dimer को विभक्त (cleavages) कर देता है। इसके पश्चात exonuclease enzyme के द्वारा thymene dimer युक्त कुछ न्युक्लियोटाइड DNA स्ट्रैंड से बाहर कर दिए जाते है तथा थायमिन डाईमर के excision से जो रिक्त स्थान ( Gap ) बनता है, वह DNA – पॉलिमरेंज (मुख्य रूप से DNA - पॉलीमरेज - I) के द्वारा भर दिया जाता है। ( DNA – Poly – I नए थायमीन मोनोमर बना लेता है )। DNA लाइगेज enzyme के द्वारा नवनिर्मित मोनोमर एवं DNA श्रृंखला के मध्य फॉस्फोडाईएस्टर बंध का निर्माण करता है, जिसके द्वारा दोनो टूटे हुए सिरे पुनः जुड़ जाते है।
(C) Post – replication Recombination repair : - इस प्रकार की रिपेयर भी अंधेरे में होती है। इस विधि में DNA अणुओं का द्विगुणन एवं पुनर्सयोजन दोनों ही क्रियाएं होती है। अतः इसे भी ( Post replication recombination repair ) द्विगुणन के बाद पुनर्सयोजन मरम्मत करते हैं।
इस विधि में पहले प्रभावित या डेमेज्ड DNA या गुणसूत्र की द्विगुणन ( replication ) एवं उसके पश्चात पुनर्सयोजन (recombination) होता है। जब थायमीन डाईमर युक्त DNA का द्विगुणन होता है, तब थायमीन डाईमर के सम्मुख स्थित अनुपूरक स्टैण्ड ( Complementry Strand ) मे रिक्त स्थान ( Gap ) रह जाता है। क्योंकि DNA पॉलिमरेज एंजाइम इस अनुपूरक स्ट्रैंड को द्विगुणन के समय टेम्पलेट के रूप मे उपयोग नही करता है।
अतः द्विगुणन के पश्चात एक स्टैण्ड में थायमीन डाईमर उपस्थित रहता है, जबकि इसके अनुपूरक स्ट्रैंड में ( Complementry Strand ) में रिक्त स्थान ( Gap ) पाए जाते है। अब ये दोनो सिस्टर गुणसूत्र या DNA इस प्रकार पुनर्सयोजन करते है। कि नवनिर्मित दोनो DNA या गुणसूत्रों में से एक गुणसूत्र पेत्रक DNA के समान होता है। इसमें किसी प्रकार की टूट - फूट नही ( undamaged ) होती है, जबकि द्वितीय DNA स्ट्रैंड के दोनो स्ट्रैंड में थायमीन डाईमर विपरीत सिरो ( ends ) पर उपस्थित होते है। इसमें से प्रथम प्रकार के अनडेमेज्ड ( undamaged ) DNA युक्त जीन ही जीवित रह पाते है।