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OSMOSIS (परासरण)

1. Osmosis
2.Experiment of osmosis
3. Types of osmosis
4. Importance of osmosis

परासरण (Osmosis)

परासरण की क्रिया जल के अणुओं का एक विलयन से दूसरे विलयन में विसरण (diffusion) है, जो अर्द्धपारगम्य झिल्ली (semipermeable membrane) के माध्यम से होता है। इसे हम सरल शब्दों में कह सकते हैं कि जब पानी का विसरण कम सांद्रण वाले घोल से अधिक सांद्रण वाले घोल की तरफ होता है, तो इसे परासरण (osmosis) कहते हैं।

परासरण का उदाहरण:

इस क्रिया को समझाने के लिए हम U ट्यूब का उपयोग करते हैं। इस ट्यूब को बीच में पार्चमेंट कागज से बाँधते हैं, जो अर्द्धपारगम्य झिल्ली का कार्य करता है। U ट्यूब के दाहिनी भुजा में पानी (जल) और बाईं भुजा में 10% शर्करा का घोल भरते हैं।

कुछ समय बाद यह देखा जाता है कि पानी के अणु दाहिनी ओर से बाईं ओर, यानी शर्करा के घोल की तरफ, विसरण करने लगते हैं। इसका कारण यह है कि दाहिनी ओर (पानी) में जल के अणुओं की सांद्रता अधिक होती है, और वे अधिक सांद्रण वाले घोल (शर्करा का घोल) की ओर जाने लगते हैं, ताकि दोनों घोलों की सांद्रता समान हो सके।

अर्द्धपारगम्य झिल्ली का कार्य:

अर्द्धपारगम्य झिल्ली केवल पानी के अणुओं को ही एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने की अनुमति देती है, जबकि शर्करा के कणों (solute) को इस झिल्ली से निकलने की अनुमति नहीं होती। इसलिए, केवल जल के अणु ही झिल्ली के आर-पार जाते हैं, और इसे परासरण (osmosis) कहा जाता है।

पौधों में परासरण:

पौधों के कोशिकाओं में भी परासरण की क्रिया होती है। कोशिका की प्लाजमालेमा (plasma membrane) और टोनोप्लास्ट (tonoplast) में विशेष प्रकार की झिल्लियाँ होती हैं जो विशिष्ट विलेय (solute) के विसरण की अनुमति देती हैं, लेकिन सभी विलेय इन झिल्लियों के माध्यम से पार नहीं कर सकते हैं।

इस प्रकार, परासरण एक महत्वपूर्ण जैविक क्रिया है जो जीवन प्रक्रियाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पौधों और जानवरों दोनों में जल का संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।



1. परासरण ( Osmosis ) :- परासरण ( Osmosis ) की क्रिया को निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते है — 
      किसी अर्द्धपारगम्य झिल्ली (semipermeable membrane) से होकर एक विलयन से दूसरे विलयन में जल के अणुओं के विसरण (diffusion of water molecules) की क्रिया को परासरण (osmosis) कहते है। यह विसरण कम सांद्रण वाले घोल से अधिक सांद्रण वाले घोल की दिशा में होता है। 
        इसे प्रदर्शित करने के लिए `U‘ ट्यूब (tube) लेते है। इसके आधार पर बीचो-बीच पार्चमेंट कागज (parchment paper) जो अर्द्धपारगम्य कला का कार्य करता है, लगा देते हैं। ट्यूब की दाहिनी भुजा में जल तथा बाईं भुजा में 10% शर्करा का घोल भर देते हैं।
        कुछ समय बाद देखने से ज्ञात होता है कि जल के अणु दाहिनी ओर से बाईं और शर्करा के घोल की और विसरण करने लगते हैं, क्योंकि जल के अणुओं की सांद्रता अधिक होने के कारण इनका विसरण शर्करा के गोल की तरफ होने लगता है। इसी प्रकार दो अलग सांद्रता वाले विलयनो को अर्द्धपारगम्य कला से पृथक करने पर भी विलायक या जल के अणु अर्द्धपारगम्य कला के आर - पार आ - जा सकते हैं जबकि विलेय (solute) के कणों द्वारा यह क्रिया नहीं होती है। इस प्रकार जल के अणुओं का अर्द्धपारगम्य कला द्वारा विसरण परासरण कहलाता है।
         पादपो में पूर्ण रुप से अर्द्धपारगम्य कला नहीं पाई जाती है, किंतु कोशिकाद्रव्य की प्लाजमालेमा विभेदी परागम्य तथा टोनोप्लास्ट (tonoplast) वरणात्मक परागम्य में कलाएं होती है। अतः कलाओं से विशिष्ट विलेयो का विसरण होता है, अर्थात सभी विलेयों का विसरण नहीं होता है।

2. प्रयोग ( Experiment ) :- थिसिल नली द्वारा परासरण का प्रदर्शन — थिसिल नली के मुंह पर कृत्रिम अर्द्धपारगम्य कला, जैसे पार्चमेंट कागज (parchment paper) को मजबूती से बांध देते हैं। थिसिल नली की ग्रीवा कांच की लम्बी नलिका की बनी होती है जिसमे गाढ़ा शर्करा का घोल भरते हैं। थिसिल नली का पार्चमेंट कागज लगा चौड़ा भाग रंगीन पानी से भरे बीकर में लटकाकर स्टैण्ड में लगा देते है।
          बीकर के भरे रंगीन जल में जल के अणुओं की सांद्रता अधिक होने के कारण वे अर्द्धपारगम्य कला (semipermeable membrane) में प्रवेश करते रहेंगे, क्योंकि शर्करा का घोल जो थिसिल नली में लिया था, उसमें जल के अणुओं की सांद्रता कम होगी अतः थिसिल नली में रंगीन जल की मात्रा बढ़ जाएगी और यह जल नली के तल (level) से ऊपर चला जाएगा। जैसे-जैसे थिसिल नली में जल की मात्रा बढ़ती जाती है, शर्करा के घोल की सांद्रता कम होती जाती है और धीरे-धीरे थिसिल नली में जल के अणुओं का विसरण कम होता जाता है। यह क्रिया अन्त: परासरण (endosmosis) कहलाती है। यदि बीकर में जल के स्थान पर गाढ़ा नमक का घोल भर दिया जाता है तो थिसिल नली से जल या विलायक के अणु बाहर की ओर नमक के घोल मे विसरण करने लगेंगे और यह क्रिया बहि: परासरण (exosmosis) कहलाएगी। वास्तव मे परासरण एवं विसरण में अन्तर है कि परासरण में किसी विलायक का विसरण अर्द्धपारगम्य कला द्वारा कम सांद्रता वाले विलयन से अधिक सांद्रता वाले विलयन की ओर होता है।

3. परासरण के प्रकार (Types of Osmosis) :- परासरण की क्रिया दो प्रकार की होती है —
 1. अन्त: परासरण (Endosmosis) — अन्त: परासरण की क्रिया में पानी अथवा विलायक के अणु बाहर के माध्यम से कोशिका के अन्दर प्रवेश करते हैं जिससे कोशिका फूल जाती है।
 2. बहि: परासरण (Exosmosis) — बहि: परासरण की क्रिया में पानी अथवा विलायक के अणु कोशिका के अन्दर से बाहर के माध्यम में आते हैं जिसमे कोशिका सिकुड़ जाती है।

3. पादपो में परासरण का महत्व (Importance of Osmosis in Plants) — 
  1. इस क्रिया द्वारा प्राय: मूलरोमो द्वारा भूमि से जल का अवशोषण होता है।
  2. इसके कारण पौधो की कोशिकाएं आशून (turgid) अवस्था में रहती हैं जिससे पौधे की पत्तियां तथा कोमल अंग सीधे खड़े रहते हैं।
  3. इसके द्वारा स्टोमेटा की रक्षक कोशिकाओं (guard cells) की आशूनता में परिवर्तन के फलस्वरूप स्टोमेटा खुलते तथा बन्द होते हैं।
  4. फलों तथा बीजाणुधानियो का फटना इसी क्रिया द्वारा सम्भव होता है।
  5. इसके द्वारा पादप शरीर की एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पानी पहुंचता रहता है।
  6. पादपो में सूखा (drought) तथा पाला (frost) अवरोधकता (resistance) कोशिकाओं में परासरण दाब के कारण बनी रहती है।
  7. पादपो या पादप अंगों में गति जैसे छुई - मुई (Mimosa pudica) परासरण के कारण होती है।
  8. जड़ों के वृद्धि प्रदेश परासरण के कारण आशून रहते हैं, अतः भूमि में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं।

Singnal transduction

Synopsis -
1. Introduction
2. Components of singnal                        transduction
3. First massenger
4. Second massenger
5. Machanism of singnal                           transduction
6. Conclusion
7. Reference
1.Introduction - सिग्नल ट्रांसडक्शन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक रासायनिक या भौतिक संकेत एक सेल के माध्यम से आणविक घटनाओं की एक श्रृंखला के रूप में प्रेषित होता है , जो आमतौर पर प्रोटीन किनेसेस द्वारा उत्प्रेरित प्रोटीन फास्फोरिलीकरण होता है , जिसके परिणामस्वरूप अंततः एक सेलुलर प्रतिक्रिया होती है। उत्तेजनाओं का पता लगाने के लिए जिम्मेदार प्रोटीन को आम तौर पर रिसेप्टर्स कहा जाता है , हालांकि कुछ मामलों में सेंसर शब्द का प्रयोग किया जाता है। [1] एक रिसेप्टर में लिगैंड बाइंडिंग (या सिग्नल सेंसिंग) द्वारा किए गए परिवर्तन एक जैव रासायनिक कैस्केड को जन्म देते हैं , जो जैव रासायनिक घटनाओं की एक श्रृंखला है जिसे सिग्नलिंग मार्ग के रूप में जाना जाता है ।
2. Components of singnal                         transduction - 
(a) Signalling molecules
(b) Signal receptor
(c) Signal covere
(d) Singnal transducer
(e) Transcription factor

(a) Signalling molecules - 
* यह ligand / chemical molecules/ elements  हो सकता है।
* Signalling molecule receptor के माध्यम से cell मे प्रवेश करता है।
*यह molecule inactive form में होता है जो बाद में active होकर work करता है।
(b) Signal receptor - यह cell surface     पर  स्थित होता है। यह ligand को                  tightly  attached करने का कार्य करता        है।
Singnal recepter 2 parts से मिलकर        बने हैं  1. Internal receptors (अंतरिक ग्राही)  - आन्तरिक ग्राही, जिसे इंट्रासेल्यूलर (Intracellular) या साइटोंप्लाज्मिक (Cytoplasmic) ग्राही के रूप मे जाना जाता है, कोशिका के कोशिकाद्रव्य में पाए जाते हैं और हाइड्रोफोबिक लिगैंड (hydrophobic ligand) अणुओ से प्रतिक्रिया (respond) देते हैं जो प्लाज्मा झिल्ली में यात्रा करने में सक्षम हैं। कोशिका के अन्दर, इनमे से कई अणु प्रोटीन से बंधते है जो एम—आर. एन. ए. (m—RNA) संशलेषण के नियामक के रूप मे कार्य करते हैं।
         2.  कोशिका - सतह ग्राही (Cell - surface receptors) —कोशिका - सतह ग्राही है जो कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली में धंसे होते हैं। वे बाह्य कोशिकीय अणुओं को प्राप्त करके कोशिका संकेतन (Cell signalling) में कार्य करते हैं। वे विशेष अभिन्न झिल्ली प्रोटीन है जो कोशिका और बाह्य कोशिकीय परिवेश के बीच संचार की अनुमति देते हैं। कोशिका - सतह ग्राही को कोशिका - विशिष्ट प्रोटीन या मार्कर (markers) भी कह
 जाता है क्योंकि वे व्यक्तिगत कोशिका - प्रकारों के लिए विशिष्ट है। अधिकांश ग्राही कोशिका की सतह पर होते हैं। पानी में घुलनशील संकेतन अणु झिल्ली लिपिड बाईलेयर  (membrane lipid bilayer) को पार नहीं कर सकते हैं, लेकिन प्लाज्मा झिल्ली में धंसे विशिष्ट ग्राही से बंधते हैं। ग्राही में एक अतिरिक्त बाह्य - कोशिकिय डोमेन (domain) होते है जो संकेतन अणु, एक हाइड्रोफोबिक  ट्रांसमेंब्रेन डोमेन और एकइंट्रासेल्यूलर डोमेनकोबांधता है। कोशिका ग्राही कोशिका संकेतन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ग्राही संकेत अणु (लिगैंड) को पहचानने में मदद करते हैं। हालांकि कुछ ग्राही अणु भौतिक कारकों (agents) (वोल्टेज, प्रकाश आदि) को प्रतिक्रिया देते हैं।

Recepter कई types के हो सकते हैं
1.  Ion channel linked receptor
2. Tyrosine kinase linked receptor
(c) Signal covere -  इसमें G protein singnal convare के रूप में उपस्थित होता है।  यह ligand को catch करने का कार्य करता है।
(d) Singnal transducer - signal convare से ligand को catch करने का कार्य करता है।
(d) Singnal transducer - 
*signal convare से ligand signal transducer मे जाता है और तब तक ये inactive form मे रहता है।
*Signal transducer में ACE adynyl cyclase enzyme उपस्थित होते है जो ligand को active करने का कार्य करता है।
*अब ligand active हो जाता है और cell मे पहला responce देता है इसे हम second massenger भी कहते हैं।
(e) Transcription factor - 
* Transcription factor cell में उपस्थित होते हैं और ligand के साथ nucleous में nucleopore के माध्यम से प्रवेश करते हैं और nucleous को प्रभावित करते हैं।
* इनमे DNA उपस्थित होता है जो mRNA तथा mRNA से translation द्वारा protein synthesis करता है फिर यही proteins cells को cell growth और cell death के लिए allowed करती हैं।
3. First massenger - यह cell के बाहर से आता है ये कोई hormone या enzyme के रूप मे होते हैं इन्हें हम ligand भी कह सकते है। यह cell की surface पर receptor के माध्यम से जुड़ता है तथा inactive form में होती है।
Example - insuline hormone
यह हमारी body में glucose level ko control करता है यह pencrease से secrease होता है।
 4. Second massenger - first massenger (कोई केमिकल molecule hormone enzyme या ligand) या जब cell के अंदर पहली बार कोई प्रतिक्रिया या responce करते हैं तब हम उसे second massanger कहते है। ये first messanger के द्वारा ही निर्मित होते हैं।
Example of second massenger - 
1. C - AMP  -  cyclic adenine mono                              phosphate
2. GMP - Gaunocine mono                                     phosphate
3. IP3 -  Inociter triphosphate
4. Ca+  - calcium etc
5. Machanism of singnal transduction - सबसे पहले ligand कोई भी ( enzyme या chemical हो सकता है यह ligand सबसे पहले cell के बाहर होता है तथा यह inactive form मे होता है। या receptor के द्वारा catch कर लिया जाता  है ये receptor ligand को cell के अंंंदले जाते है तथा यह ligand G — proteen के पास जाता है और खुद inactive होता है तथा G proteen के active कर देता है।  G — proteen मे तीन alpha , bita , gama होते है। Alpha और gama ( GTP ) cell surface से जुड़े होते है तथा bita form alpha व gama के बिच स्वतंत्र होता है। जब ligand alpha से जुड़ने वाले होता है तब इनके बीच का Bond टूट जाता है तथा bita और gama होती है तो GDP form मे आ जाते है। जब alpha active हो जाती है तब ये वापस GTP form मे आ जाता है। G - Protein से ligand होती है वह singnal transduction मे प्रवेश कर जाती है। 
      इसमें PLC एक enzyme है। तथा PLC उपस्थित होता है जो ligand को active कर IP3 मे canvert कर देता है। जो Second messanger होता है यह protein kinase enzyme को active करने का कार्य करते है तथा cytoplasm मे उपस्थित endoplasmic reticulum मे tube like structure होती है उन्हे active करने का काम करती है। जिससे endosplasmic reticulum मे जो Ca+ आयन होता है वह बाहर cytoplasm में निकल जाते है तथा जो Na+ आयन होते है वह endoplasmic reticulum मे प्रवेश करने लगते है। जो cells होती है उनके cytoplasm मे Na+ की सांद्रता होती है तथा ER मे Ca+ की सांद्रता होती है
     जिससे cells की सांद्रता प्रभावित होती है इससे जो सांद्रता होती उसे अगर cell सहन नही कर पाता हो उसकी death हो जाती है इस प्रकार की process celcium calmodium cascade कहलाती है। जिसमे cell या division होता है या cell death की process होती है।

DNA damage and repair machenism

Synopsis-
1. Introduction
2. DNA modification
3.DNA damage
4.DNA damage repair
(i)photoreactivation
(ii) Excision repair
(iii) Post replication recombination           repair
1. Introduction -  आदर्श अनुवांशिक पदार्थ DNA को अपनी प्राथमिक सरचना में ही रहना चाहिए तथा Replication एवं Transcription के समय यह बहुत उच्च fidelity वाला होना चाहिए। और विभिन्न कोशिकीय ( cellular ) एवं extra cellular factor द्वारा होने वाली damages से अपने आपको सरक्षित करना चाहिए। जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्मजीव अपने आनुवंशिक पदार्थ का संदूष न होने के लिए foreigh DNA से सुरक्षित रखते हैं। यह क्रिया restriction enzymes द्वारा होती है। जो DNA अणुओं का बिदल (cleave) करके विशिष्ट recognation स्थल प्रदान करते है किसी जीवधारी के restriction enzyme अपने DNA पर आक्रमण नही करते हैं। जीवाणुओं में यह क्रिया नियंत्रण स्थल के मिथाईलेशन द्वारा होती है। जिसे DNA का रूपांतरण भी कहते है। इसके अलावा DNA damage अनेक क्रियाविधि द्वारा काबू किया जा सकता है  जैसे – क्षतीग्रस्थ क्षेत्र ( damage region )  का excision तथा नवनिर्मित DNA द्वारा replacement करके अथवा retrieval system को अपनाकर यह कार्य किया जा सकता है।
2. DNA modification - DNA modification  की क्रिया methylation द्वारा  सम्पन्न होती हैं। जिसमे CH3 समूह जुड़ जाते है। प्रायः edenine तथा cytosine का methylation होता है। जिसके फलस्वरूप 6-methyladenine तथा 5-methylecytosine बनते हैं।DNA का methylation methylase enzyme द्वारा होता है।e coli में तीन स्पष्ट methylation system पाए जाते है। जैसे-
(1) hsd system - इस तंत्र में जीवाणुओं की भाती adenene का methylation होता है।
(2) dam system - इस तंत्र में adenene का methylation होता है। तथा यह डीएनए के नए बने पुनरावृत्ति मे अंतर बता सकता है।
(3) dm system - यह तंत्र cytosine को methylate करता है किंतु इसका कार्य ज्ञात नही है।
          DNA का methylation आवश्यक नहीं जान पड़ता है क्योंकि ecoli के उत्परिवर्तित में ये तीनो प्रकारों के methylation system नही होता है किंतु जीवन क्षम्य रहते हैं, किंतु methylation का उद्देश्य स्पष्ट होता है।
3. DNA danamge -  ultraviolet किरणों के प्रभाव से DNA के अणुओं में बहुत अधिक परिवर्तन एवं टूट - फूट ( damage ) होते है, जिनको repair आसानी से की जाती हैं। DNA damaged की मरम्मत की विधिया लगभग सभी जीवो में एक समान होती है। DNA  repair की विधियों का विस्तृत अध्ययन e - coli नामक जीवाणु में किया गया है। इन जीवाणुओं में थायमिन डायमर युक्त DNA की मरम्मत के लिए 3 विधियां दी गई है –
     (a) प्रकाशीय पुनर्सक्रियिकरण ( Photo reactivation ) 
     (b) एक्सिजन मरम्मत ( excision repair)
     (c) द्विगुणन के बाद पुनर्सयोजन मरम्मत      ( post replication )
1. Photo reactivation – केलनार (1949) के अनुसार, यदि जीवाणु कोशिकाओं को UV. किरणों के द्वारा treatment करने के पश्चात सामान्य प्रकाश ( visible light ) मे expore किया जाता है, तब UV - किरणों के हानिकारक प्रभाव समाप्त हो जाता है। इस आधार पर केलनर ने बताया कि UV - किरणों के प्रभाव DNA अणु में हुई टूट - फूट ( DNA Damage ) की repair आसानी से की जा सकती है, इसे photo - reactivation कहते है। जीवाणु शेवाल तथा कवक में इस प्रकार की विधि पाई जाती है।
            जीव को 2800°A तरंगदेधर्य वाली UV-  किरणों में अनावरित ( expore ) करने पर मनोमर से डाईमर का निर्माण हो जाता है, जबकि 2400°A तरंगदेधर्य वाली UV- किरणों के प्रभाव से डाईमर, मोनोमर में परिवर्तित हो जाता है। फोटोरिएक्टिवेशन की क्रिया में एक enzyme भाग लेता है, जो कि थाइमिन डाइमर को तोड़ ( split ) देता है। ये enzyme नीले प्रकाश में UV- किरणों के प्रभाव से उत्पन्न थायमीन डाईमर को तोड़ देता है, जिसमे थायमीन के मोनोमर ( सामान्य DNA ) का निर्माण होता है। इस enzyme को Photoreactivating enzyme कहते है। मनुष्यो में भी enzyme पाया जाता है। जिस व्यक्ति में Photoreactivating enzyme अनुपस्थित होता है, उनमें जिरोडर्मा पिगमेंटोसम                 ( Xeroderma Pigmentosum : A skim senitive to light ) नामक अनुवांशिक रोग हो जाता है, क्योंकि यह एंजाइम डाईमर को विभक्त करने के पूर्व दृश्य प्रकाश के फोटोन को अवशोषित करता है।

( b ) Excision repair – Excision repair की क्रिया में enzyme के द्वारा प्रेरित बहुत - सी अवस्थाएं आती है, जिसके द्वारा DNA का थायमीन  डाईमर ( जो कि UV- किरणों के प्रभाव से बना था ) न्युक्लियोटाइड श्रृंखला से बाहर ( removed ) कर दिया जाता है तथा उसकी जगह DNA का नयाखंड बन जाता है। इस विधि का वर्णन सर्वप्रथम सेटलो तथा कैरियर ( 1964 ) ने किया था। एक्सिजन रिपेयर नीले प्रकाश की उपस्थिति में dark ( अंधेरे मे किया जाता है ) ।
 Excision repair की क्रिया के प्रथम चरण में endinuclease enzyme भाग लेता है, जो कि Thymene dimer को विभक्त (cleavages) कर देता है। इसके पश्चात exonuclease enzyme के द्वारा thymene dimer युक्त कुछ न्युक्लियोटाइड DNA स्ट्रैंड से बाहर कर दिए जाते है तथा थायमिन डाईमर के excision से जो रिक्त स्थान ( Gap ) बनता है, वह DNA – पॉलिमरेंज (मुख्य रूप से DNA - पॉलीमरेज - I) के द्वारा भर दिया जाता है। ( DNA – Poly – I नए थायमीन मोनोमर बना लेता है )। DNA लाइगेज enzyme के द्वारा नवनिर्मित मोनोमर एवं DNA श्रृंखला के मध्य फॉस्फोडाईएस्टर बंध का निर्माण करता है, जिसके द्वारा दोनो टूटे हुए सिरे पुनः जुड़ जाते है।
(C) Post – replication Recombination repair : - इस प्रकार की रिपेयर भी अंधेरे में होती है। इस विधि में DNA अणुओं का द्विगुणन एवं पुनर्सयोजन दोनों ही क्रियाएं होती है। अतः इसे भी ( Post replication recombination repair ) द्विगुणन के बाद पुनर्सयोजन मरम्मत करते हैं।
          इस विधि में पहले प्रभावित या डेमेज्ड DNA या गुणसूत्र की द्विगुणन ( replication ) एवं उसके पश्चात  पुनर्सयोजन (recombination) होता है। जब थायमीन डाईमर युक्त DNA का द्विगुणन होता है, तब थायमीन डाईमर के सम्मुख स्थित अनुपूरक स्टैण्ड ( Complementry Strand ) मे रिक्त स्थान ( Gap ) रह जाता है। क्योंकि DNA पॉलिमरेज एंजाइम इस अनुपूरक स्ट्रैंड को द्विगुणन के समय टेम्पलेट के रूप मे उपयोग नही करता है।
अतः द्विगुणन के पश्चात एक स्टैण्ड में थायमीन डाईमर उपस्थित रहता है, जबकि इसके अनुपूरक स्ट्रैंड में ( Complementry Strand ) में रिक्त स्थान ( Gap ) पाए जाते है। अब ये दोनो सिस्टर गुणसूत्र या DNA इस प्रकार पुनर्सयोजन करते है। कि नवनिर्मित दोनो DNA या गुणसूत्रों में से एक गुणसूत्र पेत्रक DNA के समान होता है। इसमें किसी प्रकार की टूट - फूट नही                ( undamaged ) होती है, जबकि द्वितीय DNA  स्ट्रैंड के दोनो स्ट्रैंड में थायमीन डाईमर विपरीत सिरो ( ends ) पर उपस्थित होते है। इसमें से प्रथम प्रकार के अनडेमेज्ड                  ( undamaged ) DNA युक्त जीन ही जीवित रह पाते है।

Orgenogenesis in plants

Synopsis
1. Introduction
2. Steps of orgenogenesis
3. Terms of orgenogenesis
4. Role of growth regulators
5.During orgenogeneis
6. Plant production through                       orgenogenesis
7. Factors affecting orgenogenesis

1. Introduction — 1. Orgenogenesis का सीधा अर्थ है Organs का formation या developmant. 
2. Plant tissue culture के अंदर plant को regenorate करवाने का सबसे बेहतर तरीका है Orgenogenesis. 
3. Orgenogenesis process plants के organs जैसे — roots, shoots and flowers को या तो directly explant से या callus culture मे organs के development of defened करता है।

2. Steps of orgenogenesis — The process of orgenogenesis involves two steps. 
( orgenogenesis  प्रक्रिया में दो Steps होती है ) —
1. Dedifferentiation  
2. Redifferentiation.
* Dedifferentiation  process मे जो explant होता है उससे callus बनता है।
* जबकि Redifferentiation process मे callus से premordia बनता है। Premordia organs के बनने की शुरुवाती step होती है इसके बाद shoot etc बनते है।

3. Terms of orgenogenesis — Some important terms of orgenogeness. 

1.  Meristemoid — callus से जो meristematic cells बनते है वो meristmoids कहलाते है। ये आगे चलकर Shoots or roots मे convert होते है।
2. Caulogenesis — Callus से जो shoot or bud का initiation होता है उसे Caulogenesis कहते है।
3. Rhizogenesis — Aclventitious root के formation को Rhizogenesis कहते है।
4. Organoids — कुछ tissue culture मे orgenogensis programming मे कुछ error होता है तब एक विषम सरंचना का निर्माण होता है जिसे organoids कहते है।

4. Role of growth regulators  — 
1. अगर हमे root की formation करवानी होती है तो Auxin की concentration ज्यादा होनी चाहिए तथा cytokinin की कम होनी चाहिए।
2. अगर shoot की formation तब Auxin की concentration कम cytokinin की ज्यादा होना चाहिए।
3. अगर Callus को maintain करना है तो concentratio some होनी चाहिए।

5.During orgenogeneis — 1.यदि Root का formation पहले हो जाता है तो उसी से callus से shoot bud बनना बहुत मुश्किल होता है।
2. लेकिन अगर shoot bud पहले बनती है तो बाद मे जड़े बना सकते है। जड़हीन की स्थिति में तब तक रह सकते है जब तक कि किसी अन्य मीडिया या Harmone रहित medium मे स्थानांतरित न हो जाए जो root formation को प्रेरित करते है।
3. कुछ cases मे root और shoot दोनो का निर्माण एक साथ हो सकता है।

6. plant production through orgenogenesis — ऑर्गेनोजीनोसिस के माध्यम से पौधो का उत्पादन दो तरीको से प्राप्त किया जा सकता है —
1.Direct  orgenogenesis
2. Indirect orgenogenesis.


            Direct  orgenogenesis
1. इसमें planletes explant के द्वारा directly बनते है इसमें कोई callus formation नही होता है।
2. Plant की सभी cells original zygote से mitotic division द्वारा बनती है जिसमे complete genome होता है।
3. इसमें जो adventitious buds बनती है वे उस genome मे उपस्थित genes के reactivation पर depend करती है।
4. इस medium मे growth regulators Auxin or cytokinin डालने पर different प्रकार के tissue explant से shoot formation start होता है।
       
          Indirect orgenogenesis
1. इसमें पहले callus formation होता है और बाद मे shoot तथा फिर root formation होता है तो वह indirect organogenesis कहलाता है।

7. Factors affecting orgenogenesis — 1. Size of explant 
2. Source of explant
3. Age of explant
4. Seasonal variation
5. Oxygen Gradient
6. Quality and intensity of light               ( physical factor )
7. Tempereture
8. Plant hormony
9. Culture Medium
10. Agar — Agar
11. PH of the medium
12. Age of culture.