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Staining techniques

Staining technique 
                            जब wet proparation का अध्ययन Bright field micro - scopy द्वारा किया जाता हैं। तब उस preparation मे micro - organism का अध्ययन स्पष्ट रूप से नही कर पाते है। क्योंकि micro - scope की field तीव्र प्रकाशित होती है। और micro - organism इतनी light abscrb नही कर पाते है, जिसमे वे धुंधले दिखाई देते है, परन्तु जब इन micro - organism को किसी dye के द्वारा stain किया जाता हैं। तब उनकी light absorbing ability बढ़ जाती हैं। और colour differentiation के कारण हम micro - organism का अध्ययन आसानी से कर सकते है।micro - organism को इस तरह microbiological stains के द्वारा stain करने की क्रिया को ही staining करते है।
        Micro - organism की staining के लिए अनेक coloured organic compounds उपलब्ध हैं। और इन compounds को केमिकल behaviour के आधार पर विभाजित किया जाता हैं। 
जैसे - Acid, Basic, Neutral, Acid dye के आयंस निकोटीन बेसिक डाई के आयंस एसिटिक व न्यूट्रल डाई के आयंस Complex Salt है। Acid dye acidic cell compounds को stain करने का कार्य करती हैं। Stain की क्रिया मे Stain of surface की active sites के बीच lon axchange की क्रिया होती हैं।

कुछ प्रमुख Staining techniques निम्न है :-

1. ग्राम स्टेनिंग 
2. एसिड फॉस्ट स्टैनिंग
3. एण्डोस्पोर स्टैनिंग  
4.  केप्सल स्टैनिंग
5. फ्लेजिली स्टैनिंग   
6. साइटोंप्लास्मिक इंट्यूसन स्टैनिंग
7. Giemsa Staining.

 1. Simple Staining : -  
Bacterial के fixed smear को जब Staining के Single Solution के द्वारा Color किया जाता है, तो इसे Simple Staining  कहते है। इस Staining मे fixed smear को एक निश्चित समय के लिए dye solution के संपर्क मे रखा जाता है। Extra solution को slide से हटाने के लिए उसे alcohol या थोड़े से पानी से धो लिया जाता है। इस प्रकार microorganisms stain में जाते हैं और cell को  क्रिस्टल वॉयलेट (christal violet ),  मेथिलाइन ब्लू (methelene blue ),(phychosine )फाइको साइन आदि द्वारा होती हैं।
2. Differential staining :- Bacteria cell  के बीच अंतर (difference) देखने के लिए जिस स्टेनिंग टेक्निक का उपयोग किया जाता है उसे Differential staining कहते हैं। यह स्टेनिंग सिंपल स्टेनिंग की तुलना में कुछ विस्तृत है।
       Differential staining techniques के अंतर्गत उनकी staining techniques आती हैं जिनके द्वारा cell एवम other cell organism का अध्ययन अच्छी तरह से कर सकते हैं।

* Types of Differential staining techniques :-
(1) Gram staining  :- microbiology में एक महत्वपूर्ण अत्यधिक उपयोग की जाने वाली  Differential staining   के बारे में सबसे पहले क्रिश्चियन ग्राम (christian gram) ने  1884 में बताया था । इस प्रक्रिया में बैक्टीरिया को क्रम से स्टेनिंग reajent में भिगोया जाता है।
जैसे : - क्रिस्टल वॉयलेट ,आयोडीन सॉल्यूशन, एल्कोहल, सेफ्रेनिन  या कुछ अन्य counter stain .
            Gram staining विधि के द्वारा staining bacteria को दो group में बाटा गया है - 
(A) Gram positive bacteria :- gram positive bacteria को cristal वॉयलेट से Staining लेते है। और गहरे Voilet colour के दिखाई देते है। Gram positive bacteria कहलाते है।
(B) Gram Negative Bacteria :- ग्राम नेगेटिव बैक्टेरिया, क्रिस्टल वॉयलेट से Staining नही देते है। ये counter Stained होकर Red Pink colour मे दिखाई देते है। संभवत ऐसे बैक्टेरिया के Cell Wall के composition stracture के कारण होता है।
               Gram Negative bacteria को Cell - Wall gram positive bacteria की तुलना मे पतली होती है। Gram positive bacteria से gram negative bacteria मे अत्यधिक मात्रा में liquid contain करता है।
               जब Alcohol fermantation किया जाता हैं। तब gram negative bacteria की cell Wall की permiability या parosity बढ़ जाती है। और क्रिस्टल वॉयलेट, आयोडीन कॉम्पलेक्स बाहर आ जाता है। जिसमे ग्राम निगेटिव बैक्टेरिया रंगहीन हो जाता है। तथा अब cell counter stain safranin से stain होता है। जबकि gram positive bacteria मे alcohol treatment पर Cell - Wall की permiredune हो जाती है। और cristal voilet iodine Complex बाहर नही आ पाता है। अब उसकी Cell Voilet colour की ही बनी रहती है। gram staining bacteria को stain करने की सबसे महत्वपूर्ण विधी है। तथा यह Staining technique micro - organism को other group    जैसे – प्रोटोजोआ, सालमोनेला अनुपयोगी है।
             Gram Staining के अतिरिक्त अन्य अनेक Staining technique है। जिनके द्वारा Cell Structure के particular feature या Composition को identifey किया जा सकता है। कुछ staining technique इस प्रकार हैं –
(2.) Acid F Staining : - इसे सर्वप्रथम Robest koach ने दिया। इसके द्वारा Bacteria दो समूह में विभक्त होते है –
       (A) Acid fast bacteria
       (B) Non acid fast bacteria. 
Acid fast organism वे होते है जिन्हे stain करना कठीन होता है और एक बार stain होने पर उन्हें एसिड या alcohol से deneturise करना कठीन होता है। 
उदाहरण - mycobacterium ,nocardia.
(3) Endospore stain :- Bacteria में spore व spore संरचनाओं का डेमोंस्टेशन करता है।
(4) Capsule stain :- cell के चारो ओर पाए जाने वाले capsule को demostrate करता है।
(5) Flagella stain :- Flagella के arrangement व उपस्थिति को demostrate करता है।
(6) Cytoplasmic inclusion stain :- यह stain के intra cellular deposits , glycogen, polyphosphate, hydroxy butyrate व substances को identify करता है।
 (7) Giemsa stain :- इसके द्वारा मुख्य रूप से rickettsias और कुछ protozoa को stain किया जाता हैं।
        

Nitrogen fixation machanism

Synopsis :-

1. Nitrogen fixation
(a) physical nitrogen fixation
(b). Biological nitrogen fixation
(1) Asymbiotic nitrogen fixation
(2) symbiotic nitrogen fixation
2. Requirement of nitrogen fixation

Nitrogen fixation :-  वायुमंडल में लगभग 78% N2 स्थिति है। तथा Soil मैं नाइट्रोजन का 0.1 - 1% content उपस्थित रहता है। Nitrogen को Orange तथा inorganic मैं विभाजित किया जा सकता है वायुमंडलीय N को direct plants absorve नही कर सकते है। अथवा higher plants द्वारा वायुमंडलीय Nitrogen का उपयोग Organic Nitrogen Compound के रूप मे किया जाता है। जिसे “Nitrogen Fixation” कहते है।
             इस Process मे Free N2 Nitrogenous observation मे convert हो जाती है। जो Plant  द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है। Nitrogen Fixation की दो प्रोसेस है।

1. Physical N2 Fixation : - इस प्रकार की Nitrogen fixation मे कोइ भी Biological agent शामिल नहीं होता है। इस विधि में वायुमंडलीय N2 तथा 02 के Combination की कई Step होती है जिनके फलस्वरूप नाइट्रिक ऑक्साइड बनता है।
    N2 + O2 --->  2 NO (नाइट्रिक ऑक्साइड)
नाइट्रिक ऑक्साइड 02 द्वारा oxides द्वारा नाइट्रोजन पराक्साइड बनाता है।
   2NO + 02 --->  N2 02 or 2NO2
                           (नाइट्रोजन पराक्साइड)
 यह N2 पराक्साइड वर्षा के जल से क्रिया करके नाइट्रिक् acid या नाइट्रस acid बनाता है 2NO2 +Rainwater ---> HNO3 or HNO2
             ( नाइट्रिक acid ) or (नाईट्रस acid)
 यह नाइट्रिक अम्ल अथवा नाइट्रिक अम्ल एल्किल Redicals के साथ जुड़ते हैं। जो Rain water के साथ जमीन पर आते है। और plants को Root द्वारा अवशोषित हो जाते है।

 2. Biological Nitrogen Fixation : -       ( a.) A Symbiotic Nitrogen Fixation : -
       एजेटोबेक्टर तथा अन्य non - Symbiotic bacteria जैसे - रोडोस्पाईल्स, स्यूडोमोनी रोडोस्यूडोमोनास क्लोरोबियम डिप्लोकोकस, न्यूमोनी, एजेटोबेक्टर, ऐ रोजिन्स मैक्रोकोकस, साल्फ्यूरेंस bacterial भी वायुमंडलीय नाइट्रोजन को असहजीव रूप में fix करते हैं। कुछ माइक्रोऑर्गेनिक द्वारा भी नाइट्रोजन Fixation देखा गया है। ये micro - organism डिएजोट्रोफिक है। जिनके द्वारा एथिलिन से एसिटिलिन मे  reduction देता है। जिसके द्वारा नाइट्रोजन Fixation होता है। इस mechanism मे जो परिवर्तन होता है। वह engymatic complex या नाइट्रोजीनस एंजाइम द्वारा नियंत्रित होता है। Nitrogenous एंजाइम की उपस्थित मे नाइट्रोजन गैस अमोनिया मे परिवर्तन हो जाती है। नाइट्रोजीनस एंजाइम NH3 के प्रति सक्रीय होता है। यह बहुत से Micro - organism के सदस्य मे जिनमे नाइट्रोजन Fixation करने की क्षमता होती है। परंतु 02 कम मात्रा मे उपस्थित होती है। उस स्थिति के micro - organism माइक्रो एरोबिक Fixer कहलाते है। यह मीथेन को oxidise करते है।
   उदाहरण ---> स्पाईरिला ( 9947 स्पाईरिलम एजो स्पाईरिलम ) जेन्योबेक्टर ( ओटोरोकिकस एण्ड स्पाईरिलम फ्लेक्स ) 
         थायोबेसिलस फेशेऑक्सीडेंस तथा नॉनहेट्रीसिस्टस माइक्रोएरोबिक थायोबेसिलस फेशेआक्सिडेंस तथा नॉनहेट्रिसिस्टम माइक्रोएरोबिक साइनोबैक्टीरिया (आसिलोटोरिया, प्लेक्टोनिमा ) एरोबिक condition में नाइट्रोजन Fixation bacteria --- > ex - साइट्रोबेक्टर, एंटारोबेकटर, अरविनिया।

3. Requirment of N2 Fixation : - 
   (1.) नाइट्रोजन Fixation मे O2 तथा कार्बोकिसल group के केटेलिस्ट महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
   (2.) नाइट्रोजन Fixation मे बहुत कम मात्रा मे chemical ऊर्जा ( ATP ) उपयोग होती हैं। लगभग 1Kg cal Fixation 2mg of atmospheric Nitrogen यह स्थिति respiration तथा Nitrogen Fixation कि relationship को प्रद्शित करती है।
   (3.) कुछ एनएरोबिक बेक्टरिया O2 के प्रति संवेदनशील होते है।
 उदाहरण : - क्लॉसटिडियम वेस्टीयूरोएनम एक obligats एनेरोल्स है। जिसमे एजेंटबेक्टर के समान N2 Fixation की machanism पाई जाती है। क्योंकि यह बहुत अधीक मात्रा मे अपनी metabolic क्रिया में H2 उत्पन्न करते है।      
 Nitrosomonas.  Nitrobacter
NH4   ------>  NO2- -------> NO3-
अमोनिया।      नाइट्राइट।       नाइट्रेस

(b.) Symbiotic Nitrogen Fixation : - अधिकांशता legume plants मे Symbiotic N2 Fixation पाया जाता है। Soil मे उपस्थित रायजोबियम bacteria इन पौधों में hodule का Formation करते है। और सहजीवी के रूप मे निवास करने है। Legame पौधो के   उदाहरण : - चना, मटर, सोयाबीन, मूंग, अरहर।

      machanism of nitrogen fixation

microscopy

Microscopy :-

माइक्रोस्कोपी वस्तुओं और वस्तुओं के क्षेत्रों को देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी का उपयोग करने का तकनीकी क्षेत्र है जिसे नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता है (ऐसी वस्तुएं जो सामान्य आंखों की रिज़ॉल्यूशन सीमा के भीतर नहीं हैं)।  माइक्रोस्कोपी की तीन प्रसिद्ध शाखाएं हैं: ऑप्टिकल , इलेक्ट्रॉन , और स्कैनिंग जांच माइक्रोस्कोपी , एक्स-रे माइक्रोस्कोपी के उभरते क्षेत्र के साथ ।
     Orchid Roots Microscopic picture

जैव रासायनिक प्रयोगशाला में सूक्ष्म परीक्षण
ऑप्टिकल माइक्रोस्कोपी और इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी में नमूना के साथ बातचीत करने वाले विद्युत चुम्बकीय विकिरण / इलेक्ट्रॉन बीम के विवर्तन , प्रतिबिंब , या अपवर्तन , और छवि बनाने के लिए बिखरे हुए विकिरण या अन्य सिग्नल का संग्रह शामिल है। इस प्रक्रिया को नमूने के विस्तृत क्षेत्र विकिरण (उदाहरण के लिए मानक प्रकाश माइक्रोस्कोपी और ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी ) या नमूने पर एक ठीक बीम स्कैन करके (उदाहरण के लिए कन्फोकल लेजर स्कैनिंग माइक्रोस्कोपी और स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी ) द्वारा किया जा सकता है। स्कैनिंग जांच माइक्रोस्कोपीब्याज की वस्तु की सतह के साथ एक स्कैनिंग जांच की बातचीत शामिल है। माइक्रोस्कोपी के विकास ने जीव विज्ञान में क्रांति ला दी, ऊतक विज्ञान के क्षेत्र को जन्म दिया और इसलिए जीवन और भौतिक विज्ञान में एक आवश्यक तकनीक बनी हुई है । एक्स-रे माइक्रोस्कोपी त्रि-आयामी और गैर-विनाशकारी है, जिससे एक ही नमूने की बार-बार इमेजिंग की अनुमति मिलती हैया 4D अध्ययन, और उच्च रिज़ॉल्यूशन तकनीकों को त्यागने से पहले अध्ययन किए जा रहे नमूने को "अंदर देखने" की क्षमता प्रदान करना। एक 3डी एक्स-रे माइक्रोस्कोप कंप्यूटेड टोमोग्राफी (माइक्रोसीटी) की तकनीक का उपयोग करता है, नमूना को 360 डिग्री घुमाता है और छवियों का पुनर्निर्माण करता है। सीटी आमतौर पर एक फ्लैट पैनल डिस्प्ले के साथ किया जाता है। एक 3D एक्स-रे माइक्रोस्कोप कई उद्देश्यों को नियोजित करता है, उदाहरण के लिए, 4X से 40X तक, और इसमें एक फ्लैट पैनल भी शामिल हो सकता है।

History :-

एंटोनी वैन लीउवेनहोएक (1632-1723)
माइक्रोस्कोपी ( ऑप्टिकल माइक्रोस्कोपी ) का क्षेत्र कम से कम 17 वीं शताब्दी का है। पहले सूक्ष्मदर्शी, सीमित आवर्धन के साथ एकल लेंस आवर्धक चश्मा , कम से कम 13 वीं शताब्दी में चश्मे में लेंस के व्यापक प्रसार के उपयोग के रूप में दिनांकित थे । लेकिन अधिक उन्नत यौगिक सूक्ष्मदर्शी पहली बार यूरोप में 1620 के आसपास दिखाई दिए  माइक्रोस्कोपी के शुरुआती चिकित्सकों में गैलीलियो गैलीली शामिल हैं , जिन्होंने 1610 में पाया कि वह छोटी वस्तुओं को करीब से देखने के लिए अपने टेलीस्कोप को बंद कर सकते हैं और कॉर्नेलिस ड्रेबेल, जिन्होंने 1620 के आसपास यौगिक सूक्ष्मदर्शी का आविष्कार किया हो सकता है । एंटोनी वैन लीउवेनहोक ने 1670 के दशक में एक बहुत ही उच्च आवर्धन सरल सूक्ष्मदर्शी विकसित किया था और इसे अक्सर पहले स्वीकृत सूक्ष्मदर्शी और सूक्ष्म जीवविज्ञानी माना जाता है । 

Electrophoresis

Definition of electrophoresis :-

वैद्युतकणसंचलन एक प्रयोगशाला तकनीक है जिसका उपयोग डीएनए, आरएनए या प्रोटीन अणुओं को उनके आकार और विद्युत आवेश के आधार पर अलग करने के लिए किया जाता है। एक जेल या अन्य मैट्रिक्स के माध्यम से अणुओं को स्थानांतरित करने के लिए विद्युत प्रवाह का उपयोग किया जाता है। जेल या मैट्रिक्स में छिद्र एक छलनी की तरह काम करते हैं, जिससे छोटे अणु बड़े अणुओं की तुलना में तेजी से आगे बढ़ते हैं। एक नमूने में अणुओं के आकार को निर्धारित करने के लिए, ज्ञात आकारों के मानकों को एक ही जेल पर अलग किया जाता है और फिर नमूने की तुलना में किया जाता है।

Electrophoresis Principle and its types:
आवेशित मैक्रोमोलेक्यूल्स को विद्युत क्षेत्र में उनके आवेश के आधार पर ऋणात्मक या धनात्मक ध्रुव की ओर ले जाया जाता है। न्यूक्लिक एसिड का ऋणात्मक आवेश होता है और इसलिए यह एनोड की ओर चला जाता है।

इस तकनीक को दो प्रकारों में बांटा गया है जैसे स्लैब वैद्युतकणसंचलन और केशिका वैद्युतकणसंचलन।

वैद्युतकणसंचलन के प्रकार:

1.केशिका वैद्युतकणसंचलन
     (1)जेल वैद्युतकणसंचलन
     (2)कागज वैद्युतकणसंचलन

2.स्लैब वैद्युतकणसंचलन
   (1)जोन वैद्युतकणसंचलन
   (2)इम्यूनोइलेक्ट्रोफोरेसिस                               (3)आइसोइलेक्ट्रोफोकसिंग

Gel electrophoresis procedure:
नीचे हमने डीएनए वैद्युतकणसंचलन के दौरान किए गए चरणों की व्याख्या की है।
      
              GEL ELECTROPHORESIS

चरण 1: नमूना तैयार करें –

डीएनए को अलग करें और नीली डाई डालकर घोल तैयार करें ताकि जेल में हो रहे नमूने की गति का निरीक्षण करना आसान हो जाए।

चरण 2: एक agarose TAE जेल समाधान तैयार करें -

टीएई बफर समाधान वैद्युतकणसंचलन की प्रक्रिया के दौरान एक विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करने में मदद करता है। समाधान तैयार करने के लिए, उदाहरण के लिए, यदि 1% agarose जेल की आवश्यकता है तो 100mL TAE को 1 g agarose में जोड़ें। agarose का उच्च प्रतिशत एक सघन स्क्रीन देगा। agarose TAE सॉल्यूशन को गर्म करके agarose को घोलें।

चरण 3: जेल कास्टिंग -

agarose TAE घोल को कास्टिंग ट्रे में डालें। इसे ठंडा होने दें और जमने दें। कुओं के साथ एक जेल स्लैब प्रयोग के लिए तैयार है।

चरण 4: वैद्युतकणसंचलन कक्ष कैसे स्थापित करें?

टीएई बफर के साथ एक कक्ष भरें। ठोस जेल को कक्ष में रखें । जेल को ऐसी स्थिति में रखें कि वह नकारात्मक इलेक्ट्रोड के पास हो।

चरण 5: जेल लोडिंग -

कुओं को डीएनए नमूने और डीएनए सीढ़ी (आकार के लिए एक संदर्भ) के साथ लोड करें।

चरण 6: वैद्युतकणसंचलन की प्रक्रिया -

सकारात्मक और नकारात्मक बिंदुओं को बिजली की आपूर्ति और कक्ष से कनेक्ट करें। विद्युत क्षेत्र उत्पन्न होने के कारण डीएनए नमूने में शक्ति और प्रवासन पर स्विच करें। ऋणात्मक आवेशित नमूना धनात्मक बिंदु की ओर और ऋणात्मक इलेक्ट्रोड से दूर जाएगा ।

चरण 7: डीएनए का निरीक्षण करें -

एक बार जब आप जेल में नीले रंग के डीएनए नमूनों के प्रवास को देखते हैं तो बिजली की आपूर्ति बंद कर देते हैं। जेल निकालें और इसे एथिडियम ब्रोमाइड के घोल में रखें।

चरण 8: यूवी प्रकाश के तहत एथिडियम ब्रोमाइड दाग वाले जेल को बेनकाब करें और एक तस्वीर लें। डीएनए बैंड संबंधित कुएं की गली में दिखाई देते हैं। साथ ही, डीएनए सीढ़ी दिखाई दे रही है। इसलिए, डीएनए बैंड की लंबाई निर्धारित की जा सकती है। नीचे किए गए प्रयोग की छवि है।

Immunoelectrophoresis procedure:


1.इम्यूनोइलेक्ट्रोफोरेसिस प्रक्रिया:
     क्षैतिज स्थिति में कांच की स्लाइड पर                   agarose जेल तैयार करें।
2.नमूना टेम्पलेट का उपयोग करें और ध्यान से           कुओं को अनुप्रयोग क्षेत्र में ले जाएं।
3.पतला प्रोटीन समाधान के साथ 2:3 के               अनुपात में नमूना कमजोर पड़ने दें।
4.एक 5 μl पिपेट लें और प्रत्येक भट्ठा में नमूना       और नियंत्रण के 5 μl जोड़ें।
5.कैथोड पक्ष के पास नमूना स्थिति                       वैद्युतकणसंचलन के लिए कक्ष में जेल रखें।         100 वोल्ट पर 20 मिनट के लिए                    वैद्युतकणसंचलन को अंजाम दें।
6.एक गर्त में एंटीसेरम के 20 μl लें और                 वैद्युतकणसंचलन प्रतिस्पर्धा पर कमरे के                तापमान पर 8- 20 घंटे के लिए सेते हैं।
7.agarose gel को 10 मिनट के लिए                    सलाइनसॉल्यूशन में भिगोएँ, सुखाएँ और             दो बार धो लें।
8.जेल को 70 डिग्री सेल्सियस से नीचे सुखाएं          और प्रोटीन स्टेन सॉल्यूशन से 3 मिनट के           लिए दाग दें। 5 मिनट के लिए डेस्टिनेशन             सॉल्यूशन में जेल को रंग दें।
9. जेल सूख जाने के बाद परिणाम निर्धारित करें

Southern blotting technique (सदर्न ब्लोटिंग)

सदर्न ब्लोटिंग( Southern blotting )
       इस प्रविधि में DNA प्रतिदर्श (Sample) का पाचन प्रतिबंध एंजाइम (restriction enzyme) द्वारा किया जाता है इस पते हुए प्रतीदर्श का जेल इलेक्ट्रोफॉरेसिस किया जाता है। जेल (gel) मे DNA बेणड्स (bands) क्षारीय विलायक ( alkaline solution ) की सहायता से एकल स्ट्रेंडस (single strands) मे विकृत (denatured) हो जाते हैं इसके साथ-साथ बफर संतृप्त फिल्टर पेपर के शीर्ष (top) पर जेल (gel) को लिटाकर (laid) क्लच प्लेट पर रख दिया जाता है। जिससे इसके दोनों किनारे (ends) बफर में डूबे रहते हैंं। जेल के शीर्ष (top) पर नाइट्रोसेल्यूलोज कला की चादर (sheet) सेक्स दी जाती है। और इस कला के शीर्ष पर अनेक कागजों का स्तंभ (stack)  रख दिया जाता है। कागजों के स्तंभ (stack) के शीर्ष पर 0.5 किलोग्राम का भार रख दिया जाता है। फिल्टर पेपर वीक (wick) की सहायता से बफर विलियन (buffer solution) को ऊपर की ओर खींच लिया जाता है। जो जेल से होकर  नाइट्रोसेल्यूलोज कला में गुजरता है। और अंत में कागज स्तंभ (stacks) मैं पहुंच जाता है। जेल से गुजरते समय बफर अपने साथ एक स्ट्रैंड वाला (single stranded) DNA ले जाता है। जो नाइट्रोसेल्यूलोज कला द्वारा बंधित हो जाता है।

 dig. Southern blotting technique

       यह क्रिया तब होती है जबकि बफर (buffer) कागज के स्तंभ (stacks) द्वारा गुजरता है। इस विन्यास को एक रात्री (over night) के लिए रख दिया जाता है। और पेपर टॉवेल्स (paper towels) को प्रथक करके नष्ट (discard)  कर दिया जाता है। इस पर एकल स्ट्रैंडेड DNA बैंड्स के साथ नाइट्रोसेल्यूलोज कला ब्लोटेड (blotted) हो जाते हैं। जिसे 80⁰C पर 2 - 3 घंटे गर्म करते हैं। जिससे DNA कला पर स्थाई रूप से फिक्स हो जाते हैं। यह कला एग्रोस जेल से DNA बैंड्स के प्रतिकृति (replica) प्रदर्शित करते हैं। और इसे संकरण के लिए रेडियोएक्टिवली लेविल्ड DNA अथवा RNA शलाका के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। अबंधित (unbound) DNA को हटाने के लिए कला को धोया जाता है। तथा संकरण कृत कला को X - ray द्वारा उपचारित करके जेल इलेक्ट्रोफॉरेसेज प्राप्त कर लिया जाता है। सदर्न ब्लोटिंग के इन सभी पदों को दर्शाया गया है।

Northern Blotting technique (नॉरदर्न् ब्लोटिंग)

नॉरदर्न् ब्लोटिंग (Northern blotting)

         आलविन् एवं उनके सहयोगियों (Alwin et. al., 1979) ने एक विधि को सफलतापूर्वक खोज निकाला और यह विधी ‘ सदर्न ब्लॉटिंग ’ से संबंधित है। तथा नॉदर्न ब्लॉटिंग कहलाती है। इस प्रविधि में m - RNA बैंड्स (bands) को जैल (gel) से एक रासायनिक क्रियाशील कागज में ब्लॉट - स्थानांतरित किया जाता है अर्थात नाइट्रोसेल्यूलोज कला में नहीं किया जाता है। जहां वे कोवैलेंटली बंधित होते हैं। क्रियाशील कागज को अमीनोबेंजाइल ऑक्सीमिथाइल (aminobenzyl oxymethly) कागज़ के डाईएजोटाईजेशन (diazotization) द्वारा तैयार किया जाता है। एक बार m - RNA के कोवेलेंटली  बॉन्ड्स रेडियोलेविल्ड DNA शलाका से संकरण के लिए प्राप्त होने के पश्चात संकरित (hybridized) बैंड्स को ऑटोरेडियोग्राफी द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
   dig. Northern blotting techniques 

       थॉमस (Thomas, 1980) एवं आधुनिक वैज्ञानिकों केेे अनुसार  m-rna bends को सीधा
Nitrocellulose membrane पर उपयुक्त दसाओ में blotted किया जा सकता है । क्योंकि nothern blotting के इस रूप के लिए रसायनिक सक्रिय कागज जो अमीनोबेंजोइल ऑक्सीमेथाईल कागज़ के डाइएजोडाइजेशन द्वारा तैयार किया जाता है , की आवश्यकता नहीं होती है अतः इस विधि को अनेक वैज्ञानिकों ने मान्यता प्रदान की है।

DNA replication process of prokaryotic and eukaryotic

Synopsis :- 
1. Introduction
2. Prokaryotic DNA replication
3. Eukaryotic DNA replication
4. Similarities between Eukaryotic and Prokaryotic DNA replication.
5. Difference between prokaryotic and eukaryotic replication.

1. Introduction :- 

DNA replication वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मूल डीएनए स्ट्रैंड से DNA की दो समान strand  प्राप्त की जाती हैं। कोशिका विभाजन होने से पहले डीएनए दोहराता है। Prokaryotic and eukaryotic दोनों डीएनए अर्ध-रूढ़िवादी तरीके से दोहराते हैं। हालांकि, genetic material में उनके आकार और जटिलता के आधार पर Prokaryotic and eukaryotic DNA   replication में  कुछ अंतर हैं।

2. Prokaryotic DNA replication :-

यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के जीनोम दोहराए जाते हैं ताकि इसे एक बेटी कोशिका में परिवर्तित किया जा सके। डीएनए गोलाकार, डबल स्ट्रैंडेड और साइटोप्लाज्म में पाया जाता है। प्रतिकृति की एक उत्पत्ति के परिणामस्वरूप दो प्रतिकृति कांटे बनते हैं।

प्रोकैरियोटिक डीएनए की दीक्षा और बढ़ाव एंजाइम डीएनए पोलीमरेज़ III द्वारा किया जाता है। न्यूक्लियोटाइड्स को 5' से 3' दिशा में जोड़ा जाता है। गठित निक्स एंजाइम लिगेज से जुड़ते हैं।

3. Eukaryotic DNA replication :-

यूकेरियोटिक डीएनए नाभिक के अंदर मौजूद होता है। प्रक्रिया में तीन चरण शामिल हैं - initiation, elongation और termination। डीएनए हेलिसेज़ और सिंगल-स्ट्रैंड बाइंडिंग प्रोटीन अनइंडिंग और स्थिरीकरण के लिए जिम्मेदार हैं। प्रतिकृति प्रक्रिया रुकी हुई है क्योंकि एक प्रतिकृति बुलबुले के प्रमुख स्ट्रैंड दूसरे प्रतिकृति बुलबुले के लैगिंग स्ट्रैंड से मिलते हैं।

4. Similarities between prokaryotic and eukaryotic replication :-

प्रोकैरियोटिक और यूकेरियोटिक प्रतिकृति के बीच समानता को निम्नानुसार समझा जा सकता है:

a. दोनों प्रतिकृति प्रक्रियाएं परमाणु विभाजन से पहले होती हैं।

b. दोनों प्रक्रियाओं में शामिल डीएनए डबल स्ट्रैंडेड है।

c.  प्रतिकृति 5' से 3' दिशा में होती है।

d.  सिंगल-स्ट्रैंड बाइंडिंग प्रोटीन अवांछित डीएनए को स्थिर करता है।

e.  आरएनए प्राइमर को एंजाइम प्राइमेज द्वारा संश्लेषित किया जाता है।

f.   दोनों डीएनए प्रतिकृति द्वि-दिशात्मक हैं।

5. Difference between prokaryotic and eukaryotic DNA replication :-

        Prokaryotic      Eukaryotic                       replication         replication            

Function of Genetic material

Function of genetic material

कोशिका की आनुवंशिक सामग्री का मुख्य कार्य कोशिका संरचना और कार्य के लिए निर्देश शामिल करना है। डीएनए सभी सेलुलर घटकों और जीवों की अंतिम संरचना के लिए ब्लूप्रिंट के रूप में कार्य करता है। ऐसा करने के लिए, डीएनए प्रोटीन के निर्माण की जानकारी रखता है। प्रोटीन कोशिका के लिए कई संरचनाएँ बनाते हैं और एंजाइम के रूप में महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ प्रोटीन साइटोस्केलेटन बनाते हैं, जैसे एक्टिन। अन्य प्रोटीन, जैसे GLUT4, कोशिका के अंदर और बाहर सामग्री के परिवहन में शामिल होते हैं। अन्य प्रोटीन, जैसे इंसुलिन, शरीर में रासायनिक संदेशवाहक के रूप में कार्य करते हैं। अन्य एंजाइम रासायनिक प्रतिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं। शरीर में प्रोटीन के लिए कई उपयोग होते हैं और शरीर के लिए आवश्यक सभी प्रोटीन हमारे डीएनए में एन्कोडेड होते हैं।
डीएनए से प्रोटीन के निर्माण की प्रक्रिया को प्रोटीन संश्लेषण कहा जाता है। प्रोटीन संश्लेषण के दो मुख्य चरण हैं: प्रतिलेखन और अनुवाद। प्रतिलेखन के दौरान, डीएनए को आरएनए के एक रूप में कॉपी किया जाता है जिसे मैसेंजर आरएनए (एमआरएनए) कहा जाता है। फिर, साइटोप्लाज्म में राइबोसोम एमआरएनए पढ़ते हैं और अनुवाद के दौरान निर्देशों से प्रोटीन का संश्लेषण करते हैं। प्रोटीन तब कोशिका में महत्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं, जैसे कि रासायनिक प्रतिक्रियाओं या भवन संरचनाओं को उत्प्रेरित करना। प्रोटीन संश्लेषण यह सुनिश्चित करने के लिए एक कड़ाई से विनियमित प्रक्रिया है कि प्रोटीन सही समय और स्थान पर बनाए जाते हैं जो जीव को उनकी आवश्यकता होती है।

Genetic material of prokaryotes and eukaryotes

Synopsis :-

1. Introduction
2. Genetic material of prokaryotes
3. Genetic material of eukaryotes
4. Similarities between genetic                  material of prokaryotes and                   eukaryotes.
5.  Difference betweenbgenetic                  material of prokaryotes and                   eukaryotes.
6. Reference.

1. Introduction :-
प्रोकैरियोट्स और यूकेरियोट्स की आनुवंशिक सामग्री के बीच महत्वपूर्ण अंतर यह है कि प्रोकैरियोट्स की आनुवंशिक सामग्री साइटोप्लाज्म में तैरती है क्योंकि उनके पास एक नाभिक नहीं होता है जबकि यूकेरियोट्स की आनुवंशिक सामग्री नाभिक के अंदर रहती है। के बीच एक और महत्वपूर्ण अंतर यह है कि प्रोकैरियोट्स में एक छोटा जीनोम होता है और इसमें प्लास्मिड होते हैं। उनके पास एक बड़ा कुंडलित डबल-स्ट्रैंडेड गोलाकार गुणसूत्र भी होता है, जबकि यूकेरियोट्स में एक बड़ा जीनोम होता है और इसमें प्लास्मिड नहीं होते हैं।

प्रोकैरियोट्स और यूकेरियोट्स दो प्रकार के जीव हैं। बैक्टीरिया और आर्किया प्रोकैरियोट्स हैं। प्रोकैरियोट्स में एक साधारण कोशिकीय संगठन होता है। उनके पास एक नाभिक और सच्चे अंग नहीं होते हैं। दूसरी ओर, यूकेरियोट्स में एक झिल्ली-बद्ध नाभिक और सच्चे ऑर्गेनेल के साथ एक जटिल सेलुलर संगठन होता है । कवक, प्रोटिस्ट, पौधे और जानवर यूकेरियोट्स हैं।

2. Genetic material of prokaryotes :-
प्रोकैरियोट्स की आनुवंशिक सामग्री क्या है?
प्रोकैरियोट्स ऐसे जीव हैं जिनमें नाभिक नहीं होता है। वे एकल-कोशिका वाले होते हैं। इसलिए उनके पास एक साधारण सेल संगठन है। इसके अलावा, उनके पास सच्चे सेल ऑर्गेनेल नहीं हैं। प्रोकैरियोट्स की आनुवंशिक सामग्री साइटोप्लाज्म में तैरती है।
 Dig.1 :- Prokaryotic cell


बैक्टीरिया में एक बड़ा गोलाकार गुणसूत्र होता है जो अत्यधिक कुंडलित होता है। उनके पास अतिरिक्त-गुणसूत्र डीएनए भी होता है जिसे प्लास्मिड के रूप में जाना जाता है। प्लास्मिड उनके दिन-प्रतिदिन के अस्तित्व के लिए आवश्यक नहीं हैं। लेकिन उनमें एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन, कीटनाशक प्रतिरोध जीन आदि जैसे महत्वपूर्ण जीन होते हैं। इसके अलावा, ये डीएनए अणु आकार में छोटे होते हैं और आत्म-प्रतिकृति करने में सक्षम होते हैं। इन गुणों के कारण, वे पुनः संयोजक डीएनए प्रौद्योगिकी और क्लोनिंग में बहुत मूल्यवान वैक्टर के रूप में कार्य करते हैं।

3. Genetic material of eukaryotes :-

यूकेरियोट्स की आनुवंशिक सामग्री क्या है?
यूकेरियोट्स ऐसे जीव हैं जिनकी कोशिकाओं में एक नाभिक और सच्चे अंग होते हैं। कवक, प्रोटिस्ट, पौधे और जानवर यूकेरियोट्स हैं। उनकी आनुवंशिक सामग्री झिल्ली से बंधे नाभिक के अंदर स्थित होती है। इसलिए, प्रोकैरियोटिक डीएनए के विपरीत, यूकेरियोटिक डीएनए साइटोप्लाज्म में स्वतंत्र रूप से नहीं पाया जाता है।
       Dig. 2 Eukaryotic cell

          यूकेरियोटिक आनुवंशिक सामग्री रैखिक होती है और प्रोटीन के चारों ओर लिपटी होती है जिसे हिस्टोन कहा जाता है। इसमें कई सीक्वेंस होते हैं जो नॉन-कोडिंग होते हैं। इसके अलावा, यूकेरियोटिक जीन एक साथ लिप्यंतरण नहीं करते हैं। वे अलग-अलग लिप्यंतरण करते हैं और अपने स्वयं के एमआरएनए अणु बनाते हैं। एक प्रमोटर यूकेरियोट्स में एक जीन के प्रतिलेखन को नियंत्रित करता है।

4. Similarities between genetic material of prokaryotes and eukaryotes :-

(1)प्रोकैरियोट्स और यूकेरियोट्स की आनुवंशिक सामग्री डीएनए अणुओं से बनी होती है।

(2) इनमें चार न्यूक्लियोटाइड्स द्वारा निर्मित डबल-स्ट्रैंडेड डीएनए होते हैं।

(3)दोनों प्रकार की आनुवंशिक सामग्री में जीन होते हैं।

5. Difference between genetic material of prokaryotes and eukaryotes :- 
एक प्रोकैरियोटिक कोशिका के कोशिका द्रव्य में रहने वाले डीएनए को प्रोकैरियोट की आनुवंशिक सामग्री के रूप में जाना जाता है। इसके विपरीत, यूकेरियोटिक कोशिका के केंद्रक के अंदर रहने वाले डीएनए को यूकेरियोट की आनुवंशिक सामग्री के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा, प्रोकैरियोट्स में एक छोटा जीनोम होता है और इसमें प्लास्मिड होते हैं। उनके पास एक बड़ा कुंडलित डबल-स्ट्रैंडेड गोलाकार गुणसूत्र भी होता है। हालांकि, यूकेरियोट्स में एक बड़ा जीनोम होता है और इसमें प्लास्मिड नहीं होते हैं। उनके पास डबल-फंसे डीएनए के कई रैखिक अणु भी हैं।

प्रोकैरियोटिक डीएनए यूकेरियोटिक डीएनए की तुलना में बहुत अधिक संकुचित होता है। इसके अलावा, यूकेरियोटिक आनुवंशिक सामग्री में जीन के बीच और बीच में अधिक गैर-कोडिंग डीएनए होता है। इसके अलावा, प्रोकैरियोटिक जीन एक एकल एमआरएनए अणु बनाने के लिए एक साथ लिप्यंतरण करते हैं क्योंकि वे एक ऑपेरॉन के भीतर स्थित होते हैं। हालांकि, यूकेरियोटिक जीन अलग-अलग और स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित होते हैं क्योंकि उनके पास ऑपेरॉन नहीं होते हैं। इसके अलावा, प्रोकैरियोटिक डीएनए एचयू प्रोटीन के चारों ओर लपेटता है जबकि यूकेरियोटिक डीएनए हिस्टोन प्रोटीन के चारों ओर लपेटता है।

Reference :-

"बैक्टीरियल डीएनए - प्लास्मिड की भूमिका।" साइंस लर्निंग हब, 

Concept methodology and applications of proteomics

Synopsis :-

1. Introduction
2.  Methodology
3. Application of proteomics
4. Conclusion
5. Reference

1. Introduction :-  Genetics के अंतर्गत किसी cell मै जीन के द्वारा विभिन्न प्रकार के आवश्यक कार्यों को किया जाता है। जो प्रथम चरण है, इसके अलावा प्रोटीन कैसे कार्य करते हैं। एवं इनको कैसे उपयोग किया जाता है, यह जीनोम के अंतर्गत आता है।
             Protien शब्द का उपयोग cell में उपस्थित जेनेटिक एक molecular मशीन है जिसमें जिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कोशिका के विभिन्न प्रोटीन के बीच जैव रासायनिक आकर्षक का अध्ययन proteomics के अंतर्गत करते हैं।
              Cell में उपस्थित proteom की जटिलता का अध्ययन Polyacrylamate Gel electrophoresis ( PAGE ) के द्वारा करते हैं। जिसमें one - dimensional PAGE विधि मुख्यता उपयोग में की जाती है। जिसमें प्रोटीन की कुछ संख्याओं का उपयोग किया जाता है। टू - dimensional electrophoresis अधिक महत्वपूर्ण होता है।

2. Methoclology : - इस विधि में सबसे पहले प्रोटींस को अलग-अलग कर लेते हैं।
                इसके बाद विभिन्न ने जेल system द्वारा प्रोटीन को Second direction मैं अलग करते हैं। एक सामान्य विधि Isoelectri foccusing भी है, जो SDS PAGE के बाद की जाती है इसके अलावा अन्य विधियों में मासइलेक्ट्रोमिट्रि x - ray क्रिस्टलोग्राफी और nuclear magnetic resonance technique का उपयोग भी protein की संरचना के अध्ययन में किया जा सकता है।
                 विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा DNA microarray का उपयोग proteom के अध्ययन में किया गया है। जिससे विभिन्न प्रकार के अणुओं को micro - array मैं उपयोग किया जाता है। इसमें एक प्रकार मैट्रिक्स के ऊपर एंटीबॉडीज को Fix करना और उसके ऊपर - ऊपर protein sample को डालते है। जो Antibodies से bind हो जाते हैं। और हम उनका निरीक्षण कर लेते हैं। इस विधि के द्वारा Human में protein organisation को ज्ञात किया जा चुका है। इस विधि को 2001 में proteom के अध्ययन के लिए उपयोग किया गया था।

3. Application of proteomics : - 

  1. इसका उपयोग Human gene और protein को identification मे होता है। जिसमे disease को दूर करने के लिए drugs बनाने में सहायता मिलती है।

  2. इसकी सहायता से protein mass, protein structure आदि का पता लगाया जाता है। जो gene expression विधि में उपयोग होता है।

  3. Protein, Protein intraction के द्वारा cell signaly और gene regulatry की प्रक्रिया को समझा जा सकता है।

  4. बड़े सर पर protein expression का निरीक्षण proteomics के अंतर्गत करते हैं एक्सप्रेशन के लिए 2D phase PAGE और Moss इलेक्ट्रोमैट्री आदि विधियों का उपयोग करते हैं।

   5. Protein की संरचना और कार्य का अध्ययन कर इसकी कोम्पेक्सिटी का पता लगाया जा सकता है। जो biomarkers के रूप में भी उपयोग होते हैं।

   6. Proteomics के द्वारा biomarkess को पहचाना जाता है। जो becterial एवं वायरल disease के control मे कार्य करते है।

   7. Structural proteomics के अंतर्गत बड़े पैमाने पर प्रोटीन की संरचना को ज्ञात किया जाता है। जिससे protein की संरचना की तुलना और नए कार्य के जींस को खोजा जाता है। संरचनात्मक अध्ययन से drug एवं प्रोटीन के जुड़ने की क्रिया का पता लगाया जा सकता है।

4. Conclusion : - प्रोटियोमिक्स जैविक अनुसंधान में एक निरंतर बढ़ती और महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। और ऐसी कई प्रौद्योगिकीया उपलब्ध है, जो बड़ी मात्रा में डेटा उत्पन्न कर सकती है। ऐसे डेटा का विश्लेषण जैव सूचना विज्ञान के लिए रुचि के नए और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों को खोलता है।

5. Reference : - 

Proteins and protiomics - Citationsy

Rice genome project

Synopsis :-

1. Introduction
2. International rice genome                       sequencing project ( IRGSP)
3. sequencing strategy
4. Conclusion
5. Reference

1. Introduction  - चावल एक असाधारण वनस्पति है जो विश्व की लगभग आधी आबादी को विशेष रुप से एशिया अफ्रीका एवं दक्षिण अमेरिका को भोजन उपलब्ध कराता है। इसे पकाना भी आसान है तथा इसमें Lysine को छोड़कर मानव के लिए आवश्यक अन्य सभी Amino acid पाए जाते हैं। एशिया के लोगों के दैनिक जीवन में इसका उपयोग गहराई तक समया हुआ है। चावल की उत्पत्ति लगभग 14 मिलियन वर्ष पूर्व आज के दक्षिण-पूर्व एशिया एवं फिलिपिंस में हुई। अतः इसकी खेती का इतिहास बहुत पुराना है।
                    चावल एक monocarpic पौधा है। जिसकी लंबाई 1- 1.8 मीटर तथा पत्तियों की लंबाई 50 - 100 cm एवं चौड़ाई 2 - 25 cm होती है। इसके पुष्प छोटे होते हैं। जिनका परागण वायु द्वारा होता है। जो घासो के लिए लाक्षणिक है। इनका बीज एक दाना होता है। जिसकी लंबाई 5 - 12 mm तथा मोटाई 3 mm होती है। चावल ओराइजा की 2 जातियां मानव पोषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है - 0. sativa जो संपूर्ण विश्व में तथा 0.glaberrima ( अफ्रीकन चावल ) जो पश्चिमी अफ्रीका के कुछ भागों में उगाई जाती है। 0.sativa की दो प्रमुख उप.जातियां है लंबे बालों वाली ओ. सटाईवा इंडिका जैसे बासमती चावल एवं छोटे दानों वाली चिपचिपी ओ. सटाईवा जैपोनिक इंडिका चावल संपूर्ण उष्णकटिबंधीय एशिया में तथा जैपेनिका चावल शीतोष्ण पूर्वी एशिया, दक्षिण पश्चिम एशिया में शुष्क भूमि में उगाई जाती है। एक तीसरी उप.जाति जैपेनिका  भी है। जिसे अब कुशणकटिबंधीय जैपोनिका के रूप में जाना जाता है।
              चावल अनाजों के लिए एक Modal species है। तथा DNA अनुक्रम के लिए एक अच्छा पात्र भी है। इसका जीनोम size 400 - 430 kb है। जो कि प्रमुख अनाजों में सबसे छोटा परंतु चट्टानी चनसुर Arabidopsis येलियाना  से 3 गुना बड़ा है। अन्य अनाजों के पौधों की तुलना में चावल एक आसानी से आनुवंशिक रूपांतरण किया जा सकता है।

2. International rice genome                    sequencing project ;
     IRGSP : - अंतरराष्ट्रीय चावल जीनोम अनुक्रमण परियोजना ( IRGSP ) की शुरुआत सितंबर 1990 में एक कार्यशाला में हुई जो सिंगापुर में plant molecular biology आयोजित international symposium के संयोजन में संपन्न हुई। इस कार्यशाला में अनेक देशों के वैज्ञानिकों ने भाग लिया तथा इसमें चावल जिनोम के अनुक्रमण हेतु अंतरराष्ट्रीय सहयोग हेतु सहमति बनी। इसी के परिणाम स्वरूप 6 महीने बाद दिशा निर्देशों (guidlines) के स्थापना हेतु सुदूबा, जापान, कोरिया, चीन, इंग्लैंड तथा अमेरिका के प्रतिनिधियों की एक बैठक हुई। सभी प्रतिनिधियों के बीच सामग्री साझा करने physical maps एवं सटीक DNA अनुक्रम को समय से सार्वजनिक डेटाबेस को उपलब्ध कराने पर आम सहमति बनी। IRGSP मे कुल 11देश तथा IRGSP कार्यकारी समूह जिसमें सभी भाग लेने वाले देशों से एक-एक प्रतिनिधि शामिल है। सबसे नया सदस्य ब्राजील है। जिसमें बारहवे गुणसूत्र पर कार्य करने का प्रस्ताव दिया है।

TABEL -  गुणसूत्रीय अनुक्रमण में भाग लेने                       वाले देश

 Chromosome.       Country
        1.                Japan , korea
        2.            United Kingdom,canada
        3.           USA
        4.           China
        5.           Taiwan   
        6.           Japan
        7.           Yet to be proposed
        8.           Yet to be proposed
        9.           Thailand
       10.          USA
       11.           India, USA
       12.           France, Brazil


3. Sequencing strategy : -.  IRGSP के अंदर अनेक बिंदुओं पर रणनीति बनाई है। जैसे अनुक्रमण की अनुकूलतम विधि, अनुक्रमीत की जाने वाली चावल की Rice caltivar accuracy तथा अनुक्रम जारी करने की नीति आदि। अनुक्रमण हेतु DNA के स्त्रोत के लिए चावल को केवल एक किस्म का चयन किया गया क्योंकि चावल की बोई जाने वाली किस्मों की अनुवांशिक पुष्णभूमि में भिन्नता पाई जाती है। अतः इस परियोजना के लिए जैपोनिका  उप.जाति की Japonica cultivar, Nipponbare किस्म का चयन किया गया। यह किस्म चावल Genoma research program में EST अनुक्रमण एवं YAC भौतिक मानचित्र के निर्माण में प्रयुक्त की जा रही थी। अतः संपूर्ण IRGSP द्वारा समान नमूने के लिए निप्पोनणेयर का चयन किया गया।

4. Conclusion :- Rice genome की उपलब्धता सामुदायिक एनोटेशन और अन्य संसाधनों के साथ जिन्होंने कार्यक्षमता को जोड़ा अनुवांशिकी अनुसंधान और चावल प्रजनन को बदल दिया।  इसे कई तरीकों से नापा जा सकता है लेकिन जीन क्यूटियेल में वृद्धि इसका सीधा उपाय है।

5.Reference -:

1. यूनीप्रोट कंसोर्टियम। (2019) यूनीप्रोट: प्रोटीन ज्ञान का एक विश्वव्यापी केंद्र न्यूक्लिक एसिड रेस। 

2. अरंडा बी एट अल। (2010) इंटएक्ट मॉलिक्यूलर इंटरेक्शन डेटाबेस इन 2010

3. जस्सल बी एट अल। (2020) रिएक्टोम पाथवे नॉलेजबेस न्यूक्लिक एसिड रेस । 
    

👉BOTANY NOTES👈

genetic engineering and it's applications

Synopsis  :-
1. Introduction
2. Definition
3. Genetically modified organisms
4. Process
5. Application
6. Conclusion
7. Reference

1. Introduction :-  genetic किसी जीव के genome में हस्तक्षेप कर उसे परिवर्तित करने की तकनीकों व प्रणालियो तथा उनमें विकास व अध्ययन की चेष्टा का सामूहिक नाम है। मानव प्राचीन काल से ही पोधो व जीवो की प्रजनन क्रियाओं में हस्तक्षेप करके उनमें नस्लों को विकसित करता आ रहा है। (जिसमे लम्बा समय लगता है ) लेकिन इसके विपरित genetic engineering मे सीधा आण्विक स्तर पर रासायनिक और अन्य जैव प्रौद्योगिकी विधियों से ही जीवो का जीनोम बदला जाता है । प्रयोग अनुवांशिक अभियांत्रिकी द्वारा प्रकृति में न पाए जाने वाले कई जीव लक्षणों को बनाया जा चुका है, मसलन कुछ जेवमछली अंधेरे में स्वयं प्रजलित होती हैं और इनसे DNA लेकर खरगोश शोशुओ का genome बदलने से रात्री में चमकने वाले खरगोश बनाए गए हैं। इन तकनीकों से कोई अनुवांशिक रोगों का उपचार हों सकते की आशा है यह एक नई औद्योगिक क्रांति का अग्रदूत समझा जाने लगा है, जिस कारणवश कई देशों की सरकारे इसे विकसित करने के लिए निवेश कर रही हैं।

2.Defination :- Genetic engineering एक अत्यन्त महत्वपूर्ण आविष्कार है।genetic manipulation द्वारा किसी भी प्राणी के genome के हेर फेर की ही जनन विज्ञान अभियांत्रिकी मेकप बदलने के लिए भीतर और प्रजातियों की सीमाओं के पार जीनों का स्थानांतरण सुधार या उपन्यास जीवो का उत्पन्न करने सहित इस्तेमाल प्रोद्योगिकियो का एक सेट है। नए DNA पहले अलग अलग करने और आण्विक क्लोनिंग तरीकों का उपयोग कर एक DNA अनुक्रम उत्पन्न करने के लिए व्यास की अनुवांशिक सामग्री को कॉपी करके मेजबान genome ( host DNA) में डाला जा सकता है। या DNA संश्लेषण और फिर डालने और फिर इस मेजवान जीव के निर्माण के द्वारा जीन हटाया जा सकता है। और बैक्टीरिया तो उन जीवों को वयक्त करेंगे। इन जीन दवाओं या एंजाइमों कि भोजन और अन्य सबस्ट्रेट पर कार्यवाई के लिए कोड कर सकते हैं। पौधो कीट संरक्षण, शाक प्रतिरोध, वायरस प्रतिरोध, बढ़ाया पोषण, सहिष्णु दबाव में पर्यावरण के लिए और खाद्य टीको के उत्पादन के लिए संशोधित किया गया है। 
अधिकांश GMO के किट प्रतिरोधी वाणिज्यीकरण किया जाता हैं। और शाक सहिष्णु फसल पोधो । अनुवांशिक रूप से संशोधित पशुओं अनुसंधान,मॉडल जानवरो और कृषि या दवा उत्पादों के उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया।

3.Genetically modified organisms  : पौधो, जानवरो की genetic engineering के माध्यम से बदल दिया है अनुवांशिक रूप से संशोधित जीवों में कहा जाता हैं। जीवाणु में जीवों को अनुवांशिक रूप से संशोधित  करने  के लिए कर रहे थे। plasmid DNA नए gene से युक्त बैक्टीरिया कोशिका में डाला जा सकता हैअधिकांश GMO के किट प्रतिरोधी वाणिज्यीकरण किया जाता हैं। और शाक सहिष्णु फसल पोधो । अनुवांशिक रूप से संशोधित पशुओं अनुसंधान,मॉडल जानवरो और कृषि या दवा उत्पादों के उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया।

4. Process :-  1. सबसे पहले एक जीव है कि स्वाभाविक रूप से वांछित विशेषता शामिल है।
2. DNA को जीव से निकाला जाता है। इस पूरे रसोई की किताब बाहर लेने की तरह है।
3. एक वांछित जीन स्थिर है। और जिनके हजारों है की निकाले गए थे। जिसे नकल किया जाना चाहिए। इसे जीन क्लोसिंग कहा जाता है।
4. जीन प्राप्तकर्ता जीव के अंदर एक बाद एक अधिक वांछनीय तरीके से काम करने के लिए थोड़ा संशोधित किया जा सकता है।
5. नए जीन एक ट्रांसजीन बुलाया प्राप्तकर्ता जीन की कोशिकाओं में कर दिया है। इसे बदलाव कहा जाता है। सबसे आम परिवर्तन तकनीक अपने स्वयं के DNA के साथ एक बैक्टीरिया है। कि स्वाभाविक रूप से आनुवांशिक रूप से इंजीनियर पौधों का उपयोग करता है। ट्रांस दिल भी दिया है, जो तब जीव की कोशिकाओं में यह ऊद्वार में डाला जाता है, एक और तकनीक जिन बंदूक विधि कहा जाता है, शूक्षम सोने के कणों प्राप्तकर्ता जीव की कोशिकाओं में ट्रांसजीन की प्रतियों के साथ लेपित गोली मारता है। या तो तकनीक के साथ आनुवांशिक इंजीनियरों जहां या यदि ट्रांसजिन जीनोम में सम्मिलित करता है। पर कोई नियंत्रण नहीं है। नतीजतन यहां बस कुछ भी ट्रांसजेनिक जीवों को प्राप्त करने के प्रयास से सैकड़ों लेता है।
6. एक बार एक ट्रांसजेनिक जीव बनाया गया है, पारंपरिक प्रजनन अंतिम उत्पाद की विशेषताओं में सुधार करने के लिए प्रयोग किया जाता है। तो जेनेटिक इंजीनियरिंग पारंपरिक प्रजनन के लिए समाप्त करने की जरूरत नहीं है। यह बस पुल के लिए नए नए लक्षण जोड़ने के लिए एक रास्ता है।

5. Application : - 1. Medicine
                             2. Manufacturing
                             3. Research
                             4. Gene therapy
                             5. Industrial
                             6. Agriculture
                             7. Protection
                             8. Entertainment.

Genetic engineering  में दवा अनुसंधान उद्योग कृषि में अनुप्रयोग है और इसका उपयोग पौधों, जानवरों और सुक्षमजीवो की एक विस्तृत श्रृंखला पर किया जा सकता है। जीवाणुओं आनुवंशिक रूप से संशोधित होने वाले पहले जीवो में Plamid DNA डाला जा सकता है जिसमें नए जीन होते हैं। जो दवाओ या engymes के लिए कोड होते हैं। जो भोजन और अन्य Substrates को संशोधित करते हैं। पौधों को कीट सरक्षा, शाकनाशी प्रतिरोध, वायरस प्रतिरोधी, उन्नत पोषण, पर्यावरणीय दबाव के प्रति सहिष्णुता और खाद्य टीको के उत्पादन के लिए संशोधित किया गया है अधिकांश व्यवसायिकृत GMO किट  प्रतिरोधी या शाकनाशी सहिष्णु फसल पौधे हैं। आनुवंशिक रूप से संशोधित जानवरों का उपयोग अनुसंधान, मॉडल जानवरों और कृषि या दवा उत्पादों के उत्पादन के लिए किया गया है। आनुवंशिक रूप से संशोधित जानवरों में ऐसे जानवर शामिल है जिनके जिन नॉक आउट हो गए हैं। रोग के प्रति संवेदनशीलता बढ़ गई है। अतिरिक्त वृद्धि के लिए हार्मोन और अनेक दूध में प्रोटीन को व्यक्त करने की क्षमता है।
( i.) दवा : - Genetic engineering मैं दवा के लिए कई अनुप्रयोग है जिनमें दवाओं का निर्माण मानव स्थितियों की नकल करने वाले मॉडल जानवरों का निर्माण और जीन थेरेपी शामिल है।Genetic engineering के शुरुआती उपयोगों में से एक बैक्टीरिया में मानव इंसुली का बड़े पैमाने पर उत्पादन करना था। यह application अब मानव विकास Harmone, कुप उत्तेजक हार्मोन (बांझपन के इलाज के लिए)  मानव एल्ब्यूमिन, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, एंटीहेमोप्लिक कारक टिके और कई अन्य दवाओं पर लागू किया गया है। माउस हाईब्रीडोमा, कोशिकाएं बनाने के लिए एक साथ जुड़ी हुई है। मानव मोनोक्लोनल एंटीबॉडी बनाने के लिए अनुवांशिक इंजीनियरिंग के माध्यम से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को अनुकूलित किया गया है आनुवांशिक रूप से इंजीनियर वायरस विकसित किए जा रहे हैं, जो अभी भी प्रतिरक्षा प्रदान कर सकते हैं लेकिन संक्रामक अनुक्रमो की कमी है।
           मानव लोगों के पशु मॉडल बनाने के लिए Genetic engineering का भी उपयोग किया जाता है।
( ii.) Industrial : - जीव अपनी कोशिकाओं को एक उपयोगी प्रोटीन जैसे कि एक एंजाइम के लिए जिन कोडिंग के साथ बदल सकते हैं। ताकि वे वाहित प्रोटीन को ओवशएक्सप्रेस कर सके। औद्योगिक किण्वन का उपयोग करके बायोरिएक्टर उपकरण में परिवर्तित जीव को विकसित करके और फिर प्रोटीन को शुद्ध करके प्रोटीन की बड़े पैमाने पर मात्रा का निर्माण किया जा सकता है। कुछ जीन बैक्टीरिया में अच्छी तरह से काम नहीं करते हैं। इसलिए खमीर कीट कोशिकाओं या स्तनधारी कोशिकाओं का भी उपयोग किया जा सकता है इस तकनीकों का उपयोग इसलिए मानव विकास हार्मोन और टिके ट्रिपटोफेन जैसे पूरक दवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है। भोजन के उत्पादन में सहायक ( पनीर बनाने में काईमोसिन ) और ईधन। आनुवांशिक रूप से इंजीनियर बैक्टीरिया के साथ अन्य अनुप्रयोग में उन्हें अपने प्राकृतिक चक्र के बाहर कार्य करना शामिल हो सकता है, जैसे जैव ईंधन बनाना, तेल रिसाव, कार्बन और अन्य जहरीले कचरे को साफ करना और पीने के पानी में आर्सेनिक का पता लगाना। कुछ अनुवाशिक रूप से संशोधित रोगाणुओं का उपयोग उन्हें ऐसे यौगिकों में शामिल करने की क्षमता के कारण बायोमाइनिंग और बायोरेमेडीएशन में भी किया जा सकता है जो अधिक आसानी से पुनप्राप्ति करने योग्य होते हैं।
( iii.) Farming : - Genetic engineering के सबसे प्रसिद्ध और विवादास्पद अनुप्रयोग में से एक आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों या आनुवंशिक रूप से संशोधित पशुधन का निर्माण और उपयोग आनुवंशिक रूप से संशोधित  ओजन का उत्पादन करने के लिए हैं। फसलों का विकास उत्पादन बढ़ाने अजैविक दबावो के प्रति सहनशीलता बढ़ाने, भोजन की संरचना में परिवर्तन करने या नए उत्पादों के उत्पादन के लिए किया गया है।
                          बड़े पैमाने पर व्यावसायिक रूप से जारी की जाने वाली पहली फसलों ने कीटों से सुरक्षा प्रदान कि या शाकनाशियों के प्रति सहनशीलता प्रदान की कवक और विषाणु प्रतिरोधी फसलें भी विकसित की जा चुकी है। या विकास में है। यह फसलों के कीट और खरपतवार प्रबंधन को आसान बनाता है।

6. Conclusion : - अंत में Genetic engineering एवं वैज्ञानिक सफलता है जिसके कारण जैव प्रौद्योगिकी में विकास। Genetic manipulation फसलों की वृद्धि और मानव उपभोग किया गया है वृद्धि विवाद पर परिणामों के संबंध में कम। इस प्रकार नैतिक मुद्दे उत्पन्न होते हैं, वे या निर्धारित करने का प्रयास करते हैं। कि GM फसलें मनुष्य के लिए अच्छी है या बुरी Genitic engineering कर सकते हैं। बहुत सारे खतरे हैं लेकिन इस तरह के डर कम हो जाएंगे जब यह महसूस होगा कि सब कुछ खतरनाक या हानिकारक होने की संभावना है। इस प्रकार DM फसलों के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याएं विज्ञान से उत्पन्न नैतिक मुद्दों में संबंधित हो सकता है।

7. References : - 
Book name                 scientists name
1.Biotechnology -.      H.K.das
2. Basic biotechnology -  Colin ratledge and bajorn krishtiansen

application of biotechnology in agriculture

Synopsis:
1. Introduction of biotechnology
2. Definition of biotechnology
3.  History
4.  Crop modification techniques
5. Improved nutritional content
6.  Genes and traits of interest for crops
7. Common GMO crops
8 . Safety testing and government regulation.
9. Conclusion
10. Reference

1. Introduction : - Biotechnology एक ऐसी technology है जो सिर्फ प्रयोगशाला में reasearch तक सीमित नहीं हैं। बल्कि इसमें जैविक पदार्थों, पेड़-पौधे, जीव जंतु आदि के माध्यम से New technology का प्रयोग करके विभिन्न खाद्य – पदार्थों, औषधि एवं ऐसी किस्म की प्रजातियां या बीज पैदा करना होता है। जिसके माध्यम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन हो।

2. Definition : - Bio यानी जीवीत प्रणाली और Technology मतलब तकनीक। इसके मुताबिक Biotecnology का मतलब है - जीवित प्राणियों पर तकनीक का इस्तेमाल करना होता है।
            इसे निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं -
  “ किसी विशेष उत्पादों या पदार्थों को विकसित करने या बनाने के लिए जीवित प्रणालियों और जीवो का उपयोग किया जाता है। जिसे Biotechnology कहते है।
Biotechnology को हिंदी में जैव प्रौद्योगिकी कहा जाता है। 
दुसरे शब्दो में -
                       “ जैविक कारकों अथवा उनके घटकों के उपयोग द्वारा लाभदायक उत्पादों को औद्योगिक स्तर पर प्राप्त करना है Biotechnology कहते है।”
इसी प्रकार - 
                   सुक्ष्मजीवों जैसे जीवाणु, शैवाल, कवक व  यीस्ट तथा पादप एवं जंतु कोसिकाओ, कोसीकांगो अथवा उत्तको आदि में से किसी भी जीवित तंत्र को मानव समाज के लिए उपयोगी उत्पादों को औद्योगिक स्तर पर प्राप्त करने की प्रक्रिया को जैव प्रौद्योगिकी या Biotechnology कहते हैं ।
 * Agricultural Biotechnology : - Agricultural Biotechnology , जिसे एग्रीटेक के रूप में भी जाना जाता है। कृषि विज्ञान का एक क्षेत्र है। जिसमें जीवित जीवो को संशोधित करने के लिए अनुवांशिक इंजीनियरिंग, आणविक मार्कर, आणविक निदान उत्तक संस्कृति सहित वैज्ञानिक, उपकरणों सहित और तकनीकों का उपयोग शामिल है।
पौधे, जानवर और सूक्ष्मजीव, फसल आदि तथा जैव प्रौद्योगिकी कृषि भी Biotechnology का एक पहलू है। जिसे फिलहाल के दिनों में बहुत विकसित किया गया है। इनमें किसी एक विशेष प्रजाति से दूसरी प्रजाति को उत्पन्न किया जाता है। इन ट्रांसजिन फसलों में स्वाद, फूलों का रंग, प्रतिरोध क्षमता आदि विशेषताएं पाई जाती है।

3.  History : - वांछित लक्षण पैदा करने के लिए किसानों ने हजारों वर्षों से चुनिंदा प्रजनन के माध्यम से पौधों और जानवरों में हेरफेर किया। 20 वी शताब्दी मे Technology मैं वृद्धि के परिणामस्वरुप बढ़ी हुई उपज, कीट प्रतिरोध, सुखा प्रतिरोध और शाकनाशी प्रतिरोध जैसे लक्षणों के चयन के माध्यम से कृषि Biotechnology मे वृद्धि हुई।Biotechnology के माध्यम से उत्पादित पहल खाद्य उत्पाद 1990 में बेचा गया था और 2003 तक 7 मिलियन किसान Biotech फसलों का उपयोग कर रहे हैं इनमें से 85% से अधिक किसान विकासशील देशों में स्थित है।

4. Crop Modification Technology : -
 ( i.) Traditional breeding : - Traditional cross breeding का उपयोग सदियों से फसल की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार के लिए किया जाता है। माता पिता के वांछित लक्षणों के साथ एक नई और विशेष किस्म cross breeding बनाने के लिए दो योन संगत प्रजातियों को जोड़ती है।
उदाहरण : - ‘ हनिक्रिस्प सेब ‘
हनिक्रिस्प सेब अपने माता-पिता के cross breeding के कारण एक विशिष्ट बनावट और स्वाद प्रदर्शित करता है।
 ( ii.) Mutagenesis : - उत्परिवर्तन किसी भी जीव के DNA मैं बेतरतीब ढंग से हो सकता है फसलों के भीतर विविधता पैदा करने के लिए वैज्ञानिक असीमित ढंग से पौधों के अंदर उत्परिवर्तन उत्पन्न कर सकता है। फसलों को बदलने के लिए परमाणु उद्यान का प्रयोग किया जाता है। एक रेडियोधर्मी कोर एक गोलाकार बगीचे के केंद्र में स्थित होता है। और एक निश्चित दायरे के भीतर उत्परिवर्तन पैदा करते हुए आसपास की फसलों को विकिर्ण करने के लिए जमीन से ऊपर उठाया जाता है।
 ( iii.) Polyploidy : - Polyploidy को एक फसल में गुणसूत्रों की संख्या को संशोधित करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। ताकि उसकी उर्वरता और आकार को प्रभावित किया जा सके आमतौर पर जीवो में गुणसूत्रों के दो सेट होते हैं। जो द्विगुणित के रूप में जाना जाता है। कि या तो स्वाभाविक रूप से या रसायनों के उपयोग के माध्यम से गुणसूत्रों की संख्या बदली जा सकती है। जिसके परिणाम स्वरूप प्रजनन क्षमता में परिवर्तन या फसल के आकार में संशोधन हो सकता है। इस तरह से बीच रहीत तरबूज बनाए या उत्पन्न किए जा सकते हैं।
उदाहरण - एक 4 सेट Chromosome तरबूज को 2 - सेट Chromosome तरबूज के साथ Cross यह जाता है। ताकि Chromosome के तीन सेट के साथ एक बांझ (बीज रहित) तरबूज बनाया जा सके।
( iv.) Protoplast fusion : - Protoplast fusion प्रजातियों जातियों के बीच लक्षणों को स्थानांतरित करने के लिए कोशिकाओं या कोशिका घटकों का जुड़ना है।
उदाहरण - नर बंदिता का लक्षण मूली से लाल गोभी में protoplast सलयान द्वारा स्थानांतरित किया जाता है। यह नरपत देता पादप प्रजनन को को सुनकर फसलें बनाने में मदद करती है।
 Transgenics : - Transgenics मे नए जिन को मूल जिओ में पेश करने के लिए दूसरे जीव के DNA में DNA के टुकड़े को सम्मिलित करना शामिल है एक जीव की अनुवांशिक सामग्री में जीनों का यह साथ वांछित लक्षणों के साथ एक नई किस्म बनाता है।
उदाहरण - इंद्र्धनुस पपीता ।
                                       जिसे एक जीन के साथ संशोधित किया जाता है। जो इसे पपीता रिंगस्पॉट वायरस का प्रतिरोध देता है।
( v.) Genome editing : - Genone संपादन कोशिका के भीतर सीधे DNA को संशोधित करने के लिए एक एंजाइम प्रणाली का उपयोग है किसानों को खरपतवारो को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए Genome editing का उपयोग हर्बिसाईड प्रतिरोधी केनोला विकसित करने के लिए किया जाता है।

5. Improved Nutritional Content : - बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के प्रयास में विभिन्न प्रकार की फसलों की पोषण सामग्री में सुधार के लिए Agricultural Biotechnology का उपयोग किया जाता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग विटामिन की उच्च सांद्रता वाली फसलों का उत्पादन कर सकती है।
उदाहरण - गोल्डन राइस में तीन जिन होते हैं जो पौधों को ऐसे योगीको का उत्पादन करने की अनुमति देते हैं जो मानव शरीर में विटामिन - A में परिवर्तित हो जाते हैं।

6. Genes and traits of interest for crops : - 
[ I ] Agronomic Traits : -
( I.) insect resistance : - एक अत्यधिक मांग वाली विशेषता की प्रतिरोध है। यह विशेषता फसल की कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। और उच्च उपज की अनुमति देती है। इस विशेषता का एक उदाहरण ऐसी फसलें जो मूल रूप से ( बेसिलस यूटिंगिएंसिस ) मैं खोजे गए कीटनाशक प्रोटीन बनाने के लिए अनुवांशिक रूप से इंजीनियर है। बेसिलस यूटिंगिएंसिस एक जीवाणु है जो किट भगाने वाले प्रोटीन का उत्पादन करता है। जो मनुष्य के लिए बिल्कुल भी हानिकारक नहीं होते हैं। इन कीट प्रतिरोध के लिए जिम्मेदार जीन को अलग कर कई फसलों में पेश किया गया है। जैसे - बीटी - मकई इसके अतिरिक्त लोबिया, सूरजमुखी, सोयाबीन, टमाटर, तंबाकू, अखरोट, गन्ना और चावल सभी का बीटी के संबंध में अध्ययन किया जा रहा है।
 ( ii.) Disease resistance - अक्सर फसलें कीड़ों ( जैसे - एफिड्स ) के माध्यम से फैलने वाली बीमारी से पीड़ित होती है। फसल पौधों के बीच रोग फैलाना अविश्वसनीय रूप से कठिन है। और पहले केवल प्रभावित फसल को पूरी तरह से हटा कर ही इसका प्रबंधन किया जाता था। कृषि जैव प्रौद्योगिकी का क्षेत्र अनुवांशिक रूप से इंजीनियरिंग वायरस प्रतिरोध के माध्यम से एक समाधान प्रदान करता है। जीई रोग प्रतिरोधी फसलों को विकसित करने में अब कसवा मक्का और शकरकंद शामिल है।
 ( iii.) Temperature Tolerence : - कृषि जैव प्रौद्योगिकी अधिक तापमान की स्थिति में पौधों के लिए एक समाधान भी प्रदान कर सकती है। उपज को अधिकतम करने और फसल की मृत्यु को रोकने के लिए जीन को इंजीनियरिंग किया जा सकता है। जो ठंड और गर्मी सहनशीलता को नियंत्रित करता है।
उदाहरण - पपीते के पेड़ों को गर्म और ठंडे परिस्थितियों के प्रति अधिक सहिणु होने के लिए अनुवांशिक रूप से संशोधित किया गया है।

7. Common GMO Crops : - वर्तमान में USA में खरीदी गई खपत के लिए अनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों की केवल एक छोटी संख्या उपलब्ध है। USDA ने सोयाबीन, मक्का, केनोला, चुकंदर, पपीता, अल्फाल्फा, कपास, सेब और आलू को मंजूरी दी है। GMO सेब गैर - भुरा सेब है। और ब्राउनिंग विरोधी उपचार की आवश्यकता को समाप्त करते हैं। भोजन की बर्बादी को कम करते हैं। और स्वाद लाते हैं। भारत में बीटी कपास का उत्पादन आसमान छू गया है।

8. Safety testing and government regulations : - America मे Agricultural Biotechnology विनियमन तीन मुख्य सरकारी एजेंसियों के अंतर्गत आता है। कृषि विभाग (USDA), पर्यावरण संरक्षण एजेंसी, ( ईपीए ), और खाद्य एवं औषधि प्रशासन ( एफडीए )! 
1.USDA,     2.EPA,    3.FDA

9. Reference : - Agricultural research institute 1985,
* Anderson , C.J. 1984, Blumenthal, D.M. Gluck, K.S. Louis, and D. Bonnen, J.J. 1983, Historical.
* Kiesler , S. 1985,
* Hightower , J. 1973.